Friday 16 October, 2009

शुभ दीपावली ..

दीपो की कतार से ,एकता औ प्यार से
उर के उल्लास से ,जीवन के प्रकाश से
खुशियाँ फैलाई हैं दीवाली आई है ....................
राम राज्य शान की , मुक्ति वर्धमान की
न्याय और नीति की ,अहिंसा की रीति की
याद ये दिलाई है दीवाली आई है ..................
इस प्रकाश पर्व पर , मन का सब तिमिर हर
हिंसा मन के रावण सब , विजय उन् पर पाकर अब
दीवाली मनाई है दीवाली आई है ................
शुभ दीपावली ..
(रचना = प्रदीप मानोरिया)

Thursday 13 August, 2009

swantrata diwas =pradeep manoria

गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे
सभी मनाते पर्व देश का आज़ादी की वर्षगांठ है
वक्त है बीता धीरे धीरे साल द्वय और साठ है
बहे पवन परचम फहराता याद जिलाता जीत रे
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे
जनता सोचे किंतु आज भी क्या वाकई आजाद हैं
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं
मंहगाई की मारी जनता भूल गई ये जीत रे
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे
हमने पाई थी आज़ादी लौट गए अँगरेज़ हैं
किंतु पीडा बंटवारे की दिल में अब भी तेज़ है
भाई हमारा हुआ पड़ोसी भूले सारी प्रीत रे
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे
===प्रदीप मानोरिया
०९४२५१३२०६०

Friday 3 July, 2009

मिलने की प्यास रहने दे

  • ये जो गम हैं मेरे, मेरे ही पास रहने दे |
  • जिन्दगी में बाकी ये , जीने की आस रहने दे ||
  • वो मिले या न मिले , उल्फत की शमा जलती रहे |
  • न रहे साथ भले , यादें ही पास रहने दे ||
  • कतरा कतरा शराब में जिन्दगी शामिल है |
  • मय मयस्सर नहीं , महकती हुई सांस रहने दे ||
  • घूँट दो घूँट में साँसे तो महक जाती हैं |
  • जो नशे का है सबब साकी को पास रहने दे ||
  • स्याह जुल्फों के किनारे से टपकता पानी |
  • बूँद मोती सी ये अश्कों के साथ रहने दे ||
  • क्या है रुखसत का सबब कौन पूछे ,जाने |
  • वक़्त आने का कहो ,मिलने की प्यास रहने दे ||
  • ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
  • मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे ||
= प्रदीप मानोरिया
09425132060

Tuesday 30 June, 2009

सियासत

  • फिर वही राज वही काज वही मंहगाई है |
  • हिंद में कठपुतली ने फिर से कुर्सी पाई है ||
  • वही मेडम वही गुड्डा वही है डोर हाथों में |
  • फर्क इतना कि कुछ मजबूती हाथ आई है ||
  • हिंद में रेल समझोते से चली है अब तो |
  • या बिहारी या कि बंगाली ने इसे चलाई है ||
  • खुद पे ज्यादा भरोसा नहीं लाजिम मेरे दोस्त |
  • इस अति भरोसे में ही सांई ने मुंह की खाई है ||
  • बिल्ली खिसिया के नोचती है खम्बा |
  • बात ये ही है जिससे छिड़ी लड़ाई है ||
=Pradeep Manoria
चित्र vibhutipandya.blogspot.com से साभार

Friday 26 June, 2009

मोहब्बत - रूहानी ज़ज्बा

  • गुलशन में र वानी है , और रुत भी सुहानी है |
  • नहीं ज़ज्बा -ए-इश्क अगर ,फिर कैसी जवानी है ||
  • नहीं चैन कहीं मिलता , आँखे भी उनींदी हैं |
  • नज़रों में बसी सूरत ,ये इश्क निशानी है ||
  • आह्ट हो जरा कोई , आमद सी लगे उनकी |
  • नगमा ये मोहब्बत का, उल्फत की कहानी है ||
  • इज़हार मोहब्बत का , लफ्जों से लगे मुश्किल |
  • आँखों से ही कह देना , जो बात बतानी है ||
  • मिलना ही इश्क नहीं , उल्फत हो बिछड के भी |
  • हालात हों कोई भी , तेरी याद तो आनी है ||
  • भीगी सी हंसी जुल्फें , लहरा के चले जाना |
  • इनका ही सहारा है , खुसबू ही बसानी है ||
  • शम्मा ये मोहब्बत की , जो हमने जलाई है |
  • ये इश्क रहे ज़िंदा , ज़ज्बा ये रुहानी है ||
  • =प्रदीप मनोरिया
  • २६-०६-२००९
  • 09425132060

Tuesday 23 June, 2009

कब आओगे मेघ और फिर कब बरसोगे

  • राह तकत नयना थके, सतत जोहते बाट |
  • माह अषाढ़ भी जा रहा , नहीं आई बरसात ||
  • तपन नहीं अब सहन है , अब आये मानसून |
  • छींटे भी दुर्लभ हुए, बीत चला है जून ||
  • चार माह से कृपा बहुत , हे रवि तुमरा तेज़ |
  • रात हुए भी चुभत है , गरम गरम यह सेज ||
  • नहीं चैन दीखत कहीं , नहीं दीखते मेघ |
  • बिन बदरा बैचन सब , असह्य ग्रीष्म का वेग ||
  • शासन में भी उलझ रहा , अबकी ऐसा पेंच |
  • बिजली पानी की कमी , मानसून की खेंच ||
  • मेघ राज सुन लीजिये , हमरी करुण पुकार |
  • अब तो दर्शन दीजिये ,सुगम चले सरकार ||
  • =Pradeep Manoria

Sunday 21 June, 2009

पिताजी - एक श्रद्धांजलि

  • अपनो के विछोह से |
  • बंधे जिनके मोह से |
  • उनके अवसान से |
  • जीव के प्रयाण से |
  • दुख की गहराई है |
  • याद बहुत आई है |
  • जितना मैं भुलाता हूँ |
  • भूल नहीं पाता हूँ |
  • मुझ पे उनका साया था |
  • हाथों से मुझे खिलाया था |
  • धूप में कुम्हलाता हूँ |
  • कुछ सोच नहीं पाता हूँ |
  • कैसे अब जी पाऊँगा |
  • नहीं भुला पाऊँगा |
  • नहीं भुला पाऊँगा, नहीं भुला पाऊँगा |
=प्रदीप मानोरिया

Friday 10 April, 2009

सपनों का मौसम -- सन्दर्भ : लो.स.चुनाव२००९

  • पूरे देश में फसल स्वप्न की कैसी यह हरियाई है | 
  • दिवस हजारों बीते देखो याद हमारी आई है ||
  • पूर्ण देश में सपनों के विक्रेता ऐसे घूम रहे | 
  • गाँव गली में घूम घूम कर बूढे बच्चों को चूम रहे ||
  • कोई क़र्ज़ माफी के सपने ,सपने बिजली पानी के | 
  • कन्या की शादी के सपने .सस्ते चावल धानी के ||
  • नेता अब विपणन में माहिर स्वप्न सुनहरे दिखा रहा | 
  • भोला वोटर इन सपनो को निज मन में है सजा रहा ||
  • मिलने दलित अरे सांसद से , भूखा सड़क पर रहा पडा | 
  • आज उसी के घर के आगे ,नेता का वाहन आय खडा ||
  • अरे गाँव को लौटा भूखा , किन्तु नहीं मिलने पाया | 
  • आज उसी के घर में ,नेता ने भोजन खाया ||
  • फिर अखवार में फोटो अपना देख बेचारा भरमाया |
  • कष्ट पुराने विस्मृत सारे , नेता चरण शरण आया ||
  • ठगा गया वोटर ही सदा से , अपना अधिकार लुटाता है | 
  • नेता मिथ्या स्वप्न बेचकर , अपना व्यापार चलाता है ||
= प्रदीप मानोरिया 094 251 32060
photo courtsey google photo search

Tuesday 7 April, 2009

जरनैल का जूता

ज से जूता, ज से जैदी, ज से ही जरनैल है | 
वैश्विक यह संस्कृति हमारी कितना सुन्दर मेल है ||
कलम नवीसी कलम सिपाही दोनों ही पत्रकार हैं |
छोड़ कलम को आज बनाया जूते को हथियार है ||
अंतर ह्रदय ज्वालामुखी कैसा, कैसा ऐसा क्रोध है | 
स्याही सूखीआज कलम की या विरोध नव शोध है ||
सत्याग्रह से  बात चली जूते तक यह आई है |
नव विकास की नव धारा यह अर्पित लाख दुहाई है ||  
रचना प्रदीप मनोरिया ०९४२५१३२०६०

Monday 6 April, 2009

महावीर जयंती

  • वीर प्रभु की जन्म जयन्ति देती यह संदेश है / 
  • जीव सभी हैं शुध्द सिध्द सम पर का नहीं प्रवेश है / 
  • देह धार अंतिम ये अलौलिक घटना मंगलकार है / 
  • सच्चे सुख का मार्ग दिखाने लिया प्रभु अवतार है /
  • भिन्न भिन्न हैं वस्तु जगत में नित रह कर पर्याय धरें / 
  • अपनी अपनी मर्यादा में उपज विनश निर्वाह करें / 
  • नहीं आधीन किसी के कोई शुध्द स्वाधीन व्यवस्था है / 
  • योग्य अवस्था ही उपजेगी विनशे पूर्व अवस्था है / 
  • इन्द्र नरेन्द्र जिनेन्द्र भी नाहीं शक्ति ऐसी रखते हैं / 
  • पलट सकें पर्यायों का क्रम नही सामर्थ्य को धरते हैं / 
  • जीव स्वंय परिणमित है होता क्रम नियमित परिणामों से / 
  • नहीं अजीव कदापि होवे सुरभित शक्ति निधानों से / 
  • जैन धर्म का सार यही है यही समय का सार है / 
  • निज में निज को लखने वाले निश्चित बेडा पार है / 
  • सित तैरस थी चैत माह की यही दिवस था पर्व यही / 
  • गुरू कहान ने था अपनाया जिन शासन ये गर्वमयी /
  • मुक्ति मार्ग को कर आलोकित किया सरल सब काज है / 
  • हम भी निज को निज में देखें मिला ये अवसर आज है / 
        रचना प्रदीप मानोरिया

Wednesday 4 March, 2009

फागुन की बहार - Pradeep Manoria

फागुन आयो फागुन आयो फागुन आयो रे |
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे ||
गोपी नृत्य दृश्य कटि दौलन संग गिरधारी रे |
प्रेम नयन के तीर हैं तीखे, कर पिचकारी रे ||
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ...........
जाता जाड़ा ग्रीष्म की आमद लागे प्यारी रे |
धुप सुनहरी स्पर्श सुखद जब भीगे सारी रे ||
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ...........
टेसू ने वन उपवन पूरे  छठा गुलाबी रे |
मौसम का है नशा निराला , नयन शराबी रे ||
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ...........
चूनर भीगी अंगिया भीगी , कांच हुयी अब सारी रे |
कृष्ण कुंवर पीताम्बर छीना , राधा मतवारी रे  ||
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ...........
वंशी ले नटवर जा बैठे तान सुहानी रे |
झूमें गोपिन संग राधा के होकर दीवानी रे ||
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ...........
सुख स्पर्शन रंग माध्यम होली आई रे |
झूमें नाचें पकड़ लें बैंयां कुंवर कन्हाई रे |
बरसे रंग अबीर गुलाल गगन में फागुन आयो रे 
फागुन आयो फागुन आयो ........
= Pradeep Manoria 
09425132060

Saturday 28 February, 2009

होली और चुनाव की कॉकटेल

अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
जाको ओर छोर न दीखे ,बाँटो बाँटो का शोर ||  
कोई वेतन वृद्धि देता कोई टेक्स में छूट | 
जनता का वे माल लुटा कर वोट रहे हैं लूट ||  
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |  
दुनिया जूझ रही संकट से , यहाँ भरी भर पूर | 
वोटों के लालच में नेता , हुए नशे में चूर || 
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
सेवा कर कम करदिया , बढ़ गया वेतनमान | 
कहीं क़र्ज़ माफी हुयी , हुया देश कल्याण || 
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
= Pradeep Manoria 

Thursday 19 February, 2009

सुख ?

  • बीत रहा जीवन यूँ ही , 
  • बस सुख की अभिलाषा | 
  • सुख है दुख या फ़िर सुख ,
  • अनभिज्ञ रहा क्या परिभाषा || 
  • तीव्र आकुलित भोक्ता दुःख का , 
  • कम आकुलता क्या यह है सुख ?
  • जग भर जिसको सुख कहता है , 
  • वह सुख है अथवा है दुःख ?  
  • निर्विचार जीवन जीता है , 
  • रत रह व्यर्थ प्रयासों में |
  • सुख की कर कर असत कल्पना ,
  • खुश है सुख आभासों में || 
  • सुख आभासों को सुख कहना ही 
  • उपचारित जग का व्यवहार | 
  • किंतु असलियत क्या है इसकी , 
  • है आवश्यक तनिक विचार ||  
  • भोगी वेदना जब ही प्यास की ,
  • सुखमय तृप्ति देता पानी | 
  • भूख वेदना सहने पर ही 
  • सुस्वादु भोजन सुखदानी || 
  • बिस्तर का संयोग सुखद हो , 
  • जब थकान से व्यथित हुआ |
  • यौन रमण की पीडा बिन तो , 
  • यौन रमण न सफल हुआ ||  
  • पीडा से होकर व्याकुल फ़िर ,
  • जो संयोगों को भोग लिया | 
  • आकुलता की कमी क्षणिक है , 
  • उसको ही सुख मान लिया || 
  • सुखाभास यह न यथार्थ सुख ,
  • पीडा को कम कर देता |
  • पहले पीड़ित होकर प्राणी , 
  • उसको ही सुख कह लेता || 
  • भोगों के साधन पाकर फ़िर ,
  • भोगूं भोगूं आकुलता है | 
  • इसको फ़िर सुख कैसे कह दें , 
  • सुख कहना मूरखता है || 
  • फलित यही होता है अब जो , 
  • इन्द्रिय से भोगे जाते |
  • वे सुख न है वे दुःख के साधन , 
  • जग में सुख वे कहलाते ||  
  • जो इन्द्रिय से पार भोगना ,
  • निज आतम सुख का सागर | 
  • पर से नज़र हटा अन्तर में ,
  • देख लबालब सुख गागर ||
  • नहीं वेदना पीडा कोई , 
  • आकुलता का काम नहीं |
  • है आनंद अनंत अन्दर में ,
  • मात्र निराकुल धाम यही ||
=प्रदीप मानोरिया 09125132060