Sunday, 21 June 2009

पिताजी - एक श्रद्धांजलि

  • अपनो के विछोह से |
  • बंधे जिनके मोह से |
  • उनके अवसान से |
  • जीव के प्रयाण से |
  • दुख की गहराई है |
  • याद बहुत आई है |
  • जितना मैं भुलाता हूँ |
  • भूल नहीं पाता हूँ |
  • मुझ पे उनका साया था |
  • हाथों से मुझे खिलाया था |
  • धूप में कुम्हलाता हूँ |
  • कुछ सोच नहीं पाता हूँ |
  • कैसे अब जी पाऊँगा |
  • नहीं भुला पाऊँगा |
  • नहीं भुला पाऊँगा, नहीं भुला पाऊँगा |
=प्रदीप मानोरिया

8 comments:

समय चक्र said...

आदरणीय प्रदीप मनोरिया जी
काफी दिनों के बाद आपकी रचना पढ़ने को मिल रही है.
आपकी पितृ दिवस पर बहुत ही सटीक रचना लिखी है जिसे पढ़कर आंखे नम हो गई . पिता की कमी हमेशा जीवन पर्यंत रहती है . मै तो कहूँगा " ओह पापा तुम्हारे वगैर .." . . फादर्स डे पर उन्हें याद करते हुए श्रद्धासुमन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ .

समय चक्र said...

फादर्स डे पर याद करते हुए श्रद्धासुमन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ .

Udan Tashtari said...

भावुक कर दिया. पिता जी को श्रृद्धांजलि!!

दिगम्बर नासवा said...

प्रदीप जी ............ बहुत दिनों बाद लिखा है आपने कुछ.......... भाव पूर्ण, मार्मिक लिखा है ........

satish kundan said...

बहुत खूबसूरती से आपने पिता को याद किया है...मन को छू गई आपकी रचना..

D.K. Jain said...

aap to chhupe rustam nikle.bahut badia.

निर्मला कपिला said...

मार्मिक अभिव्यक्ति मेरी उनको विनम्र श्रधाँजली

रचना प्रवेश said...

भावुक कर देने वाली भावनाओ से भरी श्रदांजलि ...नमन