- वीर प्रभु की जन्म जयन्ति देती यह संदेश है /
- जीव सभी हैं शुध्द सिध्द सम पर का नहीं प्रवेश है /
- देह धार अंतिम ये अलौलिक घटना मंगलकार है /
- सच्चे सुख का मार्ग दिखाने लिया प्रभु अवतार है /
- भिन्न भिन्न हैं वस्तु जगत में नित रह कर पर्याय धरें /
- अपनी अपनी मर्यादा में उपज विनश निर्वाह करें /
- नहीं आधीन किसी के कोई शुध्द स्वाधीन व्यवस्था है /
- योग्य अवस्था ही उपजेगी विनशे पूर्व अवस्था है /
- इन्द्र नरेन्द्र जिनेन्द्र भी नाहीं शक्ति ऐसी रखते हैं /
- पलट सकें पर्यायों का क्रम नही सामर्थ्य को धरते हैं /
- जीव स्वंय परिणमित है होता क्रम नियमित परिणामों से /
- नहीं अजीव कदापि होवे सुरभित शक्ति निधानों से /
- जैन धर्म का सार यही है यही समय का सार है /
- निज में निज को लखने वाले निश्चित बेडा पार है /
- सित तैरस थी चैत माह की यही दिवस था पर्व यही /
- गुरू कहान ने था अपनाया जिन शासन ये गर्वमयी /
- मुक्ति मार्ग को कर आलोकित किया सरल सब काज है /
- हम भी निज को निज में देखें मिला ये अवसर आज है /
रचना प्रदीप मानोरिया
4 comments:
अच्छे विचारों की बेहतरीन प्रस्तुति।
भगवान् महाबीर की जयंती पर सुन्दर रचना.............सुन्दर तरीके से आपने उनके द्वारा किये गए कार्यों की व्याख्या की है
महावीर जयंती पर स्मरण कराने हेतु धन्यवाद.
bhut hi sunder
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