हिन्दी काव्य मंच
गीत गज़ल कविता का गुलदस्ता
Friday 5 November, 2010
मंगलमय दीपावली
समर्थ दीपक ज्योति है चिर काल का हर ले तिमिर ।
हो उदित अब ज्ञान ज्योति हर सके जग का भंवर ॥
निर्वाण श्री प्रभु वीर का यह दे रहा संदेश है ।
समृद्ध हो निज ज्ञान वैभव लक्ष्मी बसी निज देश है ॥
मंगलमय दीपावली
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प्रदीप मानोरिया
Thursday 14 October, 2010
global handwash day
कोई ना कोई तो ऐसी सूरत है
जिससे ये हेंड वाश जरूरत है
हाथ धोना सफाई की एक आदत है
हाथ धो कर पीछे पढ़ना एक कहावत है
भले लोगों में ये हो न हो हाथ धोने की आदत
किंतु चरितार्थ खूब होती है हाथ धोकर पीछे पड़ने की कहावत
मंदी शेयर बाज़ार के पीछे हाथ धोकर पडी है
मंहगाई भी हाथ धोकर आसमान पर जा चढी है
टिकिटअर्थी अपने आका के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं
जिन्हें नही मिलता वे बाहर हाथ मलते हुए खड़े हैं
गरीब के पीछे पडी है हाथ धोकर बीमारी
मंहगा इलाज़ मुश्किल कौन देखे विवशता और लाचारी
ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
इधर प्रशासन हाथ धोकर पीछे पडा है हाथ धुलाने को
मास्टर लगा है अपनी जेब से साबुन तोलिया जुटाने को
सार्थकता इस दिन की है कि कुछ सीख जाएँ इस आदत को
वरना तो सब कुछ ही न्योछावर है इस कहावत को
रचना प्रदीप मानोरिया 15th अक्टूबर 2008
Friday 1 October, 2010
Blood Donation
आपकी रगों में दौडता
लहू
किसी के जीवन की आस हो सकता है
जीवन मृत्यु के इम्तिहान में वह व्यक्ति पास हो सकता है
मज़हब दिल औ दिमाग का संकुचन होता है
पर लहू तो सब इंसान का अकिंचन होता है
आइये हम भी इस अकिंचन
लहू
का कुछ दान करें
मौत के संघर्ष में लडते इंसान के लिये
रक्तदान
करें
=प्रदीप मानोरिया
Wednesday 29 September, 2010
अयोध्या का फ़ैसला
मज़हब वतन में कोई मोहब्बत से बडा नहीं है
इश्क इंसानी से बढकर इबादत कोई नहीं है
सियासत के ठेकेदार लडाते मज़हब के नाम पर
है इश्क अगर दिल में बस बात ये सही है
क्या फ़ैसला जमीं ये है राम या अल्ला की
दिल को मिला ले उससे जिससे तेरी लगी है
बंदा तू राम का या अल्ला का बन्दा तू है
सांसे है वही तेरी लहू भी तेरा वही है
=प्रदीप मानोरिया
Thursday 5 August, 2010
हरियाली
गहरे और घने मेघों की सौगात धरा पर आई है
वन उपवन आँगन के गमले सब हरियाली छाई है
जहाँ अवनि पर कण माटी के बिछी पूर हरियाली है
और गगन पर रवि लोप है घटा खूब ही काली है
प्रदीप मानोरिया
चित्र साभार श्रीमति किरन नितिला
राज पुरोहित
Wednesday 4 August, 2010
अथ पान महिमा
पान
सो पदारथ सब जहान को सुधारत,
दिमाग को बढावत जामें चूना चौकसाई है ।
सुपारिन के साथ साथ मसाला मिले भांत भांत,
जामे कत्थे की रत्ती भर थोडी सी
ललाई
है ॥
बैठे हैं सभा मांहि बात करे भांत भांत,
थूकन जात बार बार जाने की बडाई है ।
कहें कवि किशोर दास चतुरन चतुराई साथ,
पान में
तमाखू
काऊ मूरख ने चलाई है ॥
रचयिता : किशोर दास खण्डवा वाले
प्रस्तुति : प्रदीप मानोरिया
साभार ; नई दुनिया इन्दौर
Sunday 27 June, 2010
षष्ठी पूर्ति
Sunday 20 June, 2010
दिल गीत और सुर
अफ़साने कुछ अनजाने से गीत पुराने लाया हूँ |
तेरी महफ़िल में बातों से लफ़्ज़ चुराने आया हूँ ||
लव खामोश और बन्द निगाहें स्याह अंधेरा छाया है |
तेरी सांसो की आवाज़ें सुर मैं मिलाने आया हूँ ||
खाली सागर फ़ैले पैमाने महफ़िल उजडी उजडी है |
बेसुध रिंदो के आलम में दो घूँट मैं पाने आया हूँ ||
रुत बरखा की मेघ दिखें न दिल धरती सा तपता है |
आँसू की दो बूँद बहा कर तपन मिटाने आया हूँ ||
दिल की चाहत दिल में रखकर वक्त बहुत अब बीत गया |
जीवन की संध्या में अब मैं याद दिलाने आया हूँ ||
=Pradeep Manoria 9425132060
Tuesday 15 June, 2010
मौन की पौन
आज अर्जुन दिख रहा क्यों कौरवों के वेश में ।
क्यों दिशा से रहित वायु बह रही इस देश में ॥
श्मसान सा भोपाल को जिनने बनाया था कभी ।
अब भी उनको पालते अर्जुन हमारे देश में ॥
कौन है जो डस गया और सपेरा कौन है।
हर कोई सच जानता अब हमारे देश में ॥
घट गया वह बुरा था सच उजागर आज है।
मौन कठपुतला रहा फ़िर भी हमारे देश में ॥
मौन वह है हाथ जिससे चल रही सब डोर है।
और बेटा मौन है नायक बना जो देश में ॥
लाशें कुचल कर कैसे भागा वो फ़िरंगी बेरहम ।
इसका उत्तर मांगती जनता हमारे देश में ॥
=प्रदीप मानोरिया
Tuesday 18 May, 2010
पानी रे पानी
पानी की कमी जो सर्वत्र ही छाई है ।
स्वंयसेवी संस्थायें चिंता से घबराई हैं ॥
एक संस्था ने पानी की बचत पर सेमिनार कराया ।
भांति भांति के लोगों को सुनने सुनाने बुलाया ॥
बहुत लोग माइक पाकर खुशी से फ़ूले ।
सुनाये जल बचत के अपने फ़ार्मूले ॥
एक बोले
बार बार गिलास धोने में पानी व्यर्थ बहता है ।
पानी पीने पूरे घर का गिलास एक रहता है ।
दूसरे बोले
हमने पानी बचाने का मस्त आइडिया अपनाया है ।
हम तो बोतल से जल पीते हैं गिलासों को ही हटाया है ।
तीसरे बोले
इतने से पानी बचाने से क्या होगा ।
बचत के लिये इतना तो करना होगा ।
कि हम तो कुछ इस तरह पानी बचाते हैं ।
खाट पर बैठ कर हम लोग नहाते हैं ।
खाट के नीचे जो पानी आता है ।
वो घर को धोने के काम आता है ।
मोहन लाल व्यर्थ की बातों से पक गये ।
जोश में आके कुछ ऐसा बहक गये ।
बोले
हम तो पानी की कमी में भी मस्त जीते हैं ।
आजकल शराब को हम नीट ही पीते हैं ।
एक डाक्टर ने सेहत के मुद्दे पर सवाल उठाया ।
बिना पानी के शराब पीने पर ऐतराज़ जताया ।
मोहनलाल ने तुरन्त खारिज़ किया ऐतराज़ ।
बोले सुनिये तो सही डाक्टर जनाब ।
बिना पानी के घूँट कब अन्दर जाता है ।
बोतल देख कर मुँह में पानी आ जाता है ।
प्रदीप मानोरिया
Sunday 9 May, 2010
माँ
ज़िन्दगी में जब कोई अवसाद आता है ।
माँ
तेरी ममता का आँचल याद आता है ॥
वक्त है बीता बहुत तेरे बिन रह्ते हुये ।
किन्तु
सर पे
माँ
तेरा ही हाथ आता है ॥
रहगुज़र में धूप भारी पर नहीं कुम्हला सका ।
साया ममता का सदा ही साथ आता है ।।
भूल हो जाये कोई फ़िर बोध हो अपराध का ।
डाँटना समझाना तेरा
माँ
याद आता है ॥
मेरे बच्चे खेलते जब उनकी माँ की गोद में ।
माँ
मुझे बचपन मेरा भी याद आता है ॥
प्रदीप मानोरिया ०९४२५१३२०६०
Saturday 27 February, 2010
होली की हार्दिक शुभ कामनायें
पर्व ये
हो
ली
ऐसी सजायें ।
.
प्रेम खुशी व प्यार लुटायें॥
.
जल
है अमोलक इसे बचायें।
.
तिलक
लगा
त्यौहार
मनायें ॥
=Pradeep Manoria
09425132060
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