Thursday 30 October, 2008

बुजुर्ग छांव

  • अपनो के विछोह से /
  • बंधे जिनके मोह से / 
  • उनके अवसान से /
  • जीव के प्रयाण से /
  • दुख की गहराई है / 
  • याद बहुत आई है / 
  • जितना मैं भुलाता हूँ /
  • भूल नहीं पाता हूँ / 
  • मुझ पे उनका साया था /
  • हाथों से मुझे खिलाया था / 
  • धूप में कुम्हलाता हूँ /
  •  सोच नहीं पाता हूँ /
  • कैसे अब जी पाऊँगा /
  • नहीं भुला पाऊँगा / 
  • नहीं भुला पाऊँगा, नहीं भुला / पाऊँगा 
Pradeep Manoria 
094-251-32060

Sunday 26 October, 2008

दीपावली मंगलमय हो -- प्रदीप मानोरिया

भगवान् महावीर का निर्वाण कार्तिक वदी अमावस को हुआ था जिसकी पावन स्मृति में जैन लोग दीपावली के पर्व को अति उत्साह से मनाते हैं , उन महावीर प्रभु की भक्ति में आज से २०० वर्ष पूर्व अशोकनगर जिले के इसागद के कविवार्र श्री भाग चंद जी ने इस भक्ति काव्य की रचना की थी , उसी रचना को हिन्दी पद्य में बदलने का प्रयास किया है . जो आप के समक्ष प्रस्तुत है
  • श्री महावीराष्टक स्त्रोत
  • कविवर पं. भाग चंद जी (मूल भाषा संस्कृत)
  • हिन्दी पद्यानुवाद प्रदीप मानोरिया
  • (गीता छंद )
  • उत्पाद व्यय अरु ध्रोव्य युत जो द्रव्य सब स्पष्टता
  • युगपत झलकते आईने सम ज्ञान कैवल्य आपका
  • सूर्य सम तम हरो प्रभु पथ मोक्ष में आलोक हो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (१)
  • दो नेत्र नीरज आपके , टिमकार नहीं न लालिमा
  • अन्तर व बाहर निर्विकारी ,स्पष्ट ही ये झलकता
  • मुद्रा है पूर्ण ही शांत अरु अति ही विमल यह है प्रभो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (२)
  • ज्यों जाल आभा इन्द्र नमते मुकुट मणियों से बने
  • दो चरण पंकज आपके अति कान्ति युत आभा धरें
  • तिन स्मरण है नीर के सम ज्वाला भव दुःख शमन हो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (३)
  • भाव भक्ति प्रमोद युत मेंढक निकट तुम आ रहा
  • गुण गण समृद्ध जो स्वर्ग निधि को मात्र क्षण में पा गया
  • फ़िर क्या है अचरज भक्त सच्चे मुक्ति को न प्राप्त हों
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (४)
  • तन तप्त स्वर्ण समान आभा ज्ञान तन अन्तर धरें
  • है ज्ञान पट झलकन अनेकों ज्ञेय किंतु अखंड है
  • सिद्धार्थ सुत तदपि अजन्में राग रिक्त अचरज अहो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (५)
  • वाणी प्रभु गंगा की भांति लहर नय निर्मल अहो
  • जल ज्ञान है अगाध प्रभुवर लोक जन स्नान को
  • है आज भी वाणी से परिचित हंस सम बुधि धन्य हों
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (६)
  • वेग अनिर्वार जिसका तीन जग में छा रहा
  • निज आत्म बल से वय कुंवर में काम भट को वश किया
  • सो आप शक्ति अनंत राजें स्फुरित नित्यानंद हो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (७)
  • तुम वैद्य हो निरपेक्ष जग मोह से आरोग्य को
  • नि:स्वार्थ बंधु हो विदित महिमा है मंगल लोक को
  • उत्तम गुणों संयुक्त भव भयभीत साधूशरण हो
  • वीर प्रभो महावीर मेरे , नयन पथ गामी बनो (८)
  • (दोहा)
  • महावीराष्टक स्त्रोत यह ,भागचंद कविराज
  • रचा सुभक्ति उर सहित , हित जीवों के काज
  • जो पढता सुनता इसे , भक्ति ह्रदय में लाय
  • निश्चित ही भवि जीव वह , परम गति को पाय

Friday 24 October, 2008

हैरान दोहे

  • वित्त मंत्री की सीख है , धरें निवेशक धीर |
  • डूबे नित्य बाज़ार है , कौन सुनाएँ पीर ||
  • -
  • मंदी की इस रेस में , डॉलर क्यों मज़बूत |
  • बात समझ से दूर है, कैसा मंदी का भूत ||
  • -
  • स्वर्ण रजत सब खो रहे, नित्य चमक जो भाव |
  • कहाँ रुकेगा जाय कर , खोजो कछु उपाव ||
  • -
  • गर्व सफलता भेजकर, चंदा पर जो यान |
  • विश्व बॉस चिंता करे ,आगे क्यों हिन्दुस्तान ||
  • -
  • दिवाली इस बार की , ली घुंडी से हीन |
  • दिवाला इस पर्व पर , लक्षपति भये दीन ||
प्रदीप मानोरिया

Monday 20 October, 2008

मुम्बई के लिए पार पत्र

  • हमारे एक मित्र बड़े चहक रहे थे 
  • यात्रा के सपनों से महक रहे थे  
  • बोले आ रहा है त्योहारी अवकाश 
  • मुंबई में देखेंगे दीपावली का प्रकाश  
  • कार्यक्रम बनाया है करके गहन विचार 
  • जा रहे हैं शीघ्र ही हम मुंबई सपरिवार  
  • तैयारी पूरी है सब हो गई है आसानी  
  • यात्रा आरक्षण भी पुष्ट है कोई नही है परेशानी  
  • भली भांति पहुँच कर खूब घूमेंगे  
  • जुहू पर नहायेंगे पीयेंगे नाचेंगे झूमेंगे  
  • मैंने कहा मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं
  • परन्तु मन में खटक रही एक बात है  
  • मुम्बई जाने से पूर्व मुम्बैई के लिए पार पत्र बनवाइए 
  • इस पासपोर्ट पर मुंबई के राज साहेब से अनुमति मंगवाइये
  •  
  • मेरी इस सलाह पर अमल करना है सावधानी 
  • तभी यह सम्भव है कि न हो जन माल कि हानि
  • उत्तर भारतीय का मुंबई में बिला-इजाज़त प्रवेश खतरनाक है 
  • क्योंकि मुम्बैई जिनके बाप की है उनकी ही वहाँ धाक है  
  • आप पर्यटक हो अथवा हो परीक्षार्थी 
  • मुम्बई की हवा हो गई है बहुत स्वार्थी 
  • वहां आपको गर शान्ति से घूमना और मज़े उठाना है  
  • तो हवा के मालिक को सर झुकाकर उनकी अनुमति मंगाना है  
  • प्रदीप मानोरिया २० अक्टूबर २००८

Thursday 16 October, 2008

चुनावी दंगल - प्रदीप मानोरिया

  • रणभेरी की गूँज उठी अब निर्वाचन आयोग से
  • पाँच राज्य में मचेगा दंगल, जीतें भाग्य संयोग से
  • नेता व्यस्त अब हर स्तर के कोई न कोई काम से
  • जाग पड़े हैं उठ बैठे हैं , सोते थे आराम से
  • कोई मांगे कोई देता कोई टिकिट दिलाता है
  • सबको मिलता टिकिट कहाँ कोई कोई ही पाता है
  • जो न पाता टिकिट वही फ़िर जुड़ता सेबोटेज से
  • रणभेरी की गूँज उठी अब निर्वाचन आयोग से
  • पाँच राज्य में मचेगा दंगल, जीतें भाग्य संयोग से
  • झंडे डंडे चर्चा पर्चा मंच कहीं या माइक है
  • जुटे पड़े हैं सब ही देखो यद्यपि नहीं वे लायक है
  • घूमे घर घर दर दर प्रत्याशी याचें सबसे वोट है
  • नत मस्तक कर जोर भंगिमा मानो गर्दन में चोट है
  • झूठे आश्वासन लेकर घूमे . उपजे स्वारथ की कोख से
  • रणभेरी की गूँज उठी अब निर्वाचन आयोग से
  • पाँच राज्य में मचेगा दंगल, जीतें भाग्य संयोग से
  • लोक तंत्र को टांग खूंटी पर चलते चाल दुधारी हैं
  • साम दाम और दंड भेद , डंडे गुंडे तैयारी है
  • वोटर देखे टुकुर टुकुर सब , वो ही एक बेचारा है
  • विजय पराजय कोई की हो वोटर सदा ही हारा है
  • यह दंगल नेता को प्यारा, वोटर पीड़ित इस रोग से
  • रणभेरी की गूँज उठी अब निर्वाचन आयोग से
  • पाँच राज्य में मचेगा दंगल, जीतें भाग्य संयोग से
  • रचना == प्रदीप मानोरिया १७ अक्टूबर २००८

Tuesday 14 October, 2008

हेंड वाश डे बनाम आदत या कहावत

  • कोई ना कोई तो ऐसी सूरत है
  • जिससे ये हेंड वाश जरूरत है
  • हाथ धोना सफाई की एक आदत है
  • हाथ धो कर पीछे पढ़ना एक कहावत है
  • भले लोगों में ये हो न हो हाथ धोने की आदत
  • किंतु चरितार्थ खूब होती है हाथ धोकर पीछे पड़ने की कहावत
  • मंदी शेयर बाज़ार के पीछे हाथ धोकर पडी है
  • मंहगाई भी हाथ धोकर आसमान पर जा चढी है
  • टिकिटअर्थी अपने आका के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं
  • जिन्हें नही मिलता वे बाहर हाथ मलते हुए खड़े हैं
  • गरीब के पीछे पडी है हाथ धोकर बीमारी
  • मंहगा इलाज़ मुश्किल कौन देखे विवशता और लाचारी
  • ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
  • हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
  • इधर प्रशासन हाथ धोकर पीछे पडा है हाथ धुलाने को
  • मास्टर लगा है अपनी जेब से साबुन तोलिया जुटाने को
  • सार्थकता इस दिन की है कि कुछ सीख जाएँ इस आदत को
  • वरना तो सब कुछ ही न्योछावर है इस कहावत को
रचना प्रदीप मानोरिया 15th अक्टूबर 2008

Monday 13 October, 2008

कलेंडर (Calendar)

  • विषय, वर्ग और आदतों को बढावा देने नए प्रकार का कलेंडर बुना
  • हर एक के दिवस को मनाने कोई न कोई दिन चुना 
  • इस प्रकार राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये विभिन्न दिवस मनाये जाते है 
  • वे कभी शिक्षक दिवस, हास्य दिवस या मातृ दिवस कहलाते है 
  • किंतु यह बिडम्बना है आज की
  • अथवा खुमारी है समाज की 
  • अब स्वयं शिक्षक ही शिक्षक दिवस मनाता है 
  • स्वयं ही दरी जाजम और कुर्सी बिछाता है 
  • इन्जीनीर्यस ही इन्जीनीर्यस डे का करते हैं आयोजन 
  • एक मुख्य अतिथि कुछ जलपान या भोजन 
  • हास्य दिवस पर हंसने वाले इकठ्ठे हो जाते है
  • हंसने वालों को हंसने के फायदे समझाते हैं 
  • हिन्दी दिवस की भी भिन्न नही बीमारी है 
  • इसे मनाने की कलमकार की ही जिम्मेदारी है 
  • वे कलमकार श्रोताविहीन कक्ष में करते हैं विचार
  • परस्पर हिन्दी का दुखडा रोकर कर लेते हैं स्वल्पाहार  
  • गर ऐसा ही आलम रहा बरकरार 
  • सोता रहा समाज और ऊंघती रही सरकार 
  • तो फ़िर शहीद दिवस कैसे मनाया जायेगा ?
  • इसे मनाने क्या कोई शहीद यहाँ वापिस आयेगा ?  
  • रचना प्रदीप मनोरिया

Saturday 11 October, 2008

हिन्दी काव्य मंच: दिल की बीमारी

हिन्दी काव्य मंच: दिल की बीमारी

दिल की बीमारी

  • ये जो दिल की बीमारी है
  • किसी को नशा किसी को खुमारी है
  • तो किसी को बन गयी लाचारी है
  • जवानी में जब ये लगता है रोग
  • सुहाती तन्हाई काटते हैं लोग
  • उड़ जाती है भूख और प्यास
  • ऊपर से खुश अन्दर से उदास
  • नींद है गायब ख्वावों में खोया
  • जागते जागते ही लगता है सोया
  • लक्षण है रोग के अत्यन्त गंभीर
  • किंतु नहीं कोई चिकित्सक वीर
  • जो रोग से मुक्ति दिलाये
  • थोड़ी राहत का घूँट पिलाए
  • जवानी के बाद जो हो गए बीत जवान
  • उन्हें बूढा नहीं कहना ही है उनका सम्मान
  • इस बीमारी से बीत जवान हैरान
  • चलने में कभी चढ़ने में परेशान
  • बाहर है साँसों का नियंत्रण
  • नाकाम है दावतों के निमंत्रण
  • बरकरार है भूख और प्यास
  • मिलती है रूखी रोटी सब्जी और घास
  • हलुआ रवडी मिठाई के आते हैं ख्वाव
  • पुराने स्वाद को ही कर लेते हैं याद
  • बेड रेस्ट करो डाक्टर की सलाह
  • दिल की बेजारी नहीं कोई उपाय
  • कमरे में मौजूद एक अदद बीबी
  • सामने कोलाहल परोसती टी वी
  • जवानी में थी फूलों की डाली हीरे की कनी
  • बाजू में बैठी अब लगती है नागफनी
  • वास्तव में
  • राहे इश्क आसान है मुश्किल है डाक्टर की गली
  • दिल की बीमारी तो जवानी वाली ही भली
रचना प्रदीप मनोरिया

Friday 10 October, 2008

मुम्बई उनके बाप की

  • लोकतंत्र की नई परिभाषा, पेश-ऐ-नज़र है आपकी
  • वह बच्चे अब कहने लगे हैं, मुम्बई मेरे बाप की
  • सांस जब लोगे छोड़ोगे, मुंबई में जो आप की
  • उनका भी हिसाब दे देना, मुम्बई जिनके बाप की
  • रोटी खाई कितनी है और, साथ दाल या साग की
  • रखना होगा अब हिसाब क्यों? मुंबई उनके बाप की
  • बच्चो को शाला भेजो या, दफ्तर दुकान जो आपकी
  • कब आना जाना हुआ है कैसे ,मुंबई उनके बाप की
  • साँसे खाना आना जाना ,गणना सब होगी आपकी
  • सबका मालिक एक वही है, मुंबई जिनके बाप की
  • भाषाविद हे ज्ञानी कहना, भाषा क्या कहती आपकी
  • कौन तंत्र मुंबई में लागू मुम्बई जिनके बाप की
  • रचना प्रदीप मानोरिया

Thursday 9 October, 2008

ताजा समाचार सन्दर्भ -

(१)
  • छोड़ दी क्रिकेट 
  • घड़ी कर दिए विकेट 
  • सफलता भी चूमी  
  • देखी हार की भूमि  
  • शर्ट लहराई
  • झंडे सी फहराई 
  • चली जब तक चली  
  • सौरभ गांगुली
  • अब निवृति भली 
  • (२) 
  • क़र्ज़ से परेशान 
  • सूखे से हैरान 
  • आत्म हन्ता किसान
  • मेरा भारत महान  
  • टूटता शेयर बाज़ार 
  • भारी मंदी की मार 
  • न रोज़गार न काम  
  • आत्म हन्ता राजाराम 
  • बच्चों की भूख 
  • लाकर बन्दूक 
  • मार ली गोली
  • बुश की जय बोली  
  • रचना प्रदीप मानोरिया

Wednesday 8 October, 2008

शेयर बाज़ार

  • शेयर बाजारी कारोबारी टूट गयी सब आस
  • बनी चवन्नी जो था रुपया रोऊँ किसके पास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • संभल न पाया गोता खाया महल बना जो ताश
  • बड़ों बड़ों के छक्के छूटे चेहरा हुआ उदास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • तीव्र गति से मंद मति से चाहें करें विकास
  • ओंधें मुंह बाज़ार पडा है कारण क्या है ख़ास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • मंदी हालत भाग्य को लानत हुया ये सत्यानाश
  • धंधा ये आराम का जंचता अन्य न आता रास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • प्रदीप मानोरिया संपर्क ०९४२५१३२०६०

Tuesday 7 October, 2008

कांग्रेसी दोहे

  • पार्टी जो कांग्रेस है मैडम आलकमान | 
  • अबकी से तो कर दिया , जारी ये फरमान ||
  • नेताओं ने मिल किया, पार्टी बंटाढार | 
  • अत: टिकिट बांटे सभी योग्यता के अनुसार ||
  • किंतु मध्यप्रदेश में नेता सात प्रधान | 
  • स्वयं बैठ मिल कर लिया कोटे का निर्माण ||
  • उपकृत निज चमचे रहें अत: धरा ये स्वांग | 
  • मैडम के फरमान को दिया खूंटी पर टांग ||
  • डीएस जे एस एस पी धर अपने यह कोड |
  • कोटा से बांटे टिकिट यही गुणा और जोड़ ||
  • अर्जी टिकिटअर्थी बनी धर ऐसा आधार | 
  • चमचे किसके हो कहो किस प्रति वफ़ा दार ||
  • चाहे क्षेत्र में हो नहीं किंचित भी आधार | 
  • चमचागिरी का कोड बता पाओ टिकिट तुम यार ||
  • पार्टी का कुछ भी बने, लेने जाए तेल | 
  • कोटा पेटा भर चलो राजनीती का खेल ||  
  • रचना प्रदीप मानोरिया

Sunday 5 October, 2008

नैनो की विदाई

  • अब छोड़ के यह सिंगूर . कि जाना मुझको है अब दूर
  • यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
  • छोड़ के ये बंगाली साया , इसको गुज्जू देश है भाया
  • पहुँच के भुज में बनेगी फ़िर ये सड़कों की जो हूर
  • यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
  • ममता की निर्ममता भारी , मिष्ट स्वाद को किया है खारी
  • रतन जी टाटा की मजबूरी ,जाना है अब दूर
  • यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
  • बेटी बंगाल की हुयी पराई , मोदी के घर हुयी सगाई
  • कच्छ देश में उसी वेश में, चमकेगा फ़िर नूर
  • यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
  • सपना टाटा का बड़ा ही जूना, टूटेगा अब यह कबहू ना
  • कारण टाटा उद्योगों में, रहे सदा ही शूर
  • यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
रचना प्रदीप मानोरिया ०४-१०-२००८ संपर्क ०९४२५१३२०६०

Friday 3 October, 2008

१२३ परमाणु करार

  • आज हमारे पडौसी श्री राम अवतार
  • भोर ही पधारे लेकर गरमागरम अखवार
  • बोले भाई साहेब बहुत बहुत बधाई
  • कहकर जलेबी की पुडिया आगे बढाई
  • मैंने प्रश्नवाचक भंगिमा बनाई
  • तब उन्होंने ख़बर सुनाई
  • जिसके लिए प्रधानमंत्री जी थे बेकरार
  • आख़िर हो ही गया वो परमाणु करार
  • राम अवतार ने अपना मुंह फ़िर खोला
  • और बड़े विश्वास से बोला
  • कि देश की जनता अब लाभ उठाएगी
  • बिजली की कटौती कम हो जायेगी
  • पूरी बिजली और पानी की समस्या सुलझेगी
  • परेशान जनता भी अब चैन से रह लेगी
  • मंहगाई जो छु रही थी आसमान
  • उस पर भी कसेगी अब कमान
  • मैंने तब राम अवतार के सपनो को विराम दिया
  • जैसे तैसे मिथ्या आशावादी रामअवतार को चुप किया
  • मैंने कहा अरे राम अवतार ज़रा मेरी भी सुनो
  • सुबह सुबह से ही शेखचिल्ली मत बनो
  • जो बिजली पानी की समस्या और मंहगाई का बुखार है
  • उसका कारण अराजकता और भ्रष्टाचार है
  • यह परमाणु करार तुम्हारे काम का नहीं है
  • इससे हम तुम को कोई आराम नहीं है
  • यह तो मुद्दे की जड़ से उत्पन्न दंभ का परिणाम है
  • हम तो उतने ही मजबूर है इससे हमारा क्या काम है रचना प्रदीप मानोरिया

Wednesday 1 October, 2008

हिन्दी का चिंतन

  • कहाँ खड़ी भाषा ये हिन्दी वह कितनी समृद्ध हुई
  • कितने पुरूष हैं भाषाप्रेमी कितनी महिलायें प्रबुद्ध हुई
  • खडा प्रश्न यह अनसुलझा सा और सदा ही खडा रहे
  • सृजन साहित्य का करने वाला और मनीषी यही कहे
  • चिंतन नहीं विषय का किंतु चिंता भाषा की बनी रहे
  • वक्ता लेखक तो बढ़ते जाते श्रोता पाठक की कमी रहे
  • तो भी करें आकलन इसका क्योंकि अवसर आया है
  • सब जानें हमने भी देखो हिन्दी दिवस मनाया है
  • साधन संचारों के फैले दुनिया मुठ्ठी में आयी है
  • इंटरनेट पर बन्धु देखो हिन्दी ने धूम मचाई है
  • प्रगति अरे हिन्दी भाषा की बिल गेट की बलिहारी है
  • सार्वभौम कर लिपि हिन्दी को जग के बीच उछारी है
  • गूगल जैसे महारथी से कार्य और आसान हुआ
  • इधर लिखा अगले क्षण में दुनिया को वह उपलब्ध हुआ
  • प्रिंट मीडिया से आगे यह नेट मीडिया जायेगा
  • हिन्दी का प्रचार हो व्यापक समृद्धि इसे दिलाएगा रचना प्रदीप मानोरिया
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