- फिर वही राज वही काज वही मंहगाई है |
- हिंद में कठपुतली ने फिर से कुर्सी पाई है ||
- वही मेडम वही गुड्डा वही है डोर हाथों में |
- फर्क इतना कि कुछ मजबूती हाथ आई है ||
- हिंद में रेल समझोते से चली है अब तो |
- या बिहारी या कि बंगाली ने इसे चलाई है ||
- खुद पे ज्यादा भरोसा नहीं लाजिम मेरे दोस्त |
- इस अति भरोसे में ही सांई ने मुंह की खाई है ||
- बिल्ली खिसिया के नोचती है खम्बा |
- बात ये ही है जिससे छिड़ी लड़ाई है ||
=Pradeep Manoria
चित्र vibhutipandya.blogspot.com से साभार
12 comments:
बहुत सुन्दर ! आपकी रंगीली पोस्ट सबसे हटकर होती है !
बहुत ही अच्छा लिखा आपने ।
प्रदीप जी,
यह वही गज़ल है ना जिसे ख्याल को गुनगुनाये जाने के दौरान या मुक्कमिल होने से पहले मैंने आपसे सुना था फोन पर?
खूब लिखी है, वास्तविकता का सटीक चित्रण।
बधाई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सबसे पहले आपका शुक्रिया आपके खुबसूरत कमेन्ट के लिया....बहुत सटीक लिखा है आपने.. फिर वही राज वही काज वही मंहगाई है |हिंद में कठपुतली ने फिर से कुर्सी पाई है
व्यंग की dhaar वापस आ रहा है आपकी रचना में प्रदीप जी............... लाजवाब लिखा है .......
नमस्कार ........... वाह जी वाह....... बहुत बढिया रचना है..... आशा है आप मजे में होंगे।
kuchh hatkar ,kuchh jhtakar maza liya padhkar .uttam .siyasat ke kisse ke kya kahane .yah to isme basi hui hai .
bahut baddhiya parodiiiiiii hai, sir
नाचना तो सभी को पड़ता, पर सोचने वाली बात ये है की नचाने वाला या वाली कैसी है.
ये डॉन भी हो सकते हैं , देश द्रोही भी हो सकते है, उद्ध्योग्पति भी हो सकते है, सच्चे देशभक्त भी हो सकते.....
फैसला वक्त करता है,
देश ने आजादी के बाद के देश के जो सपने देखे थे, नेहरू के औध्ध्योगिकीकरण ने चरखे को नेपथ्य में ला दिया, उसके पूर्व स्वार्थ के चलते गाँधी की बात न मान देश का बंटवारा हो जाने दिया, गरीबी हटाओ का नारा लगा, पर आज तक नतीजा सिफर है.............
फिर भी सभी नेताओं के खूबियों के किस्से गए जाते रहे हैं.
आज तक किसी ने भी कुछ गिने-चुनों जैसे गांधीजी, शास्त्रीजी को छोड़ कर नाकामयाबी का सेहरा अपने सर बांधने की हिमाकत कितने लोग कर सके हैं.............देश तो कैसे भी चलता ही रहेगा, कोई रहे या न रहे....
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत बडिया अभिव्यक्ति है
# वही मेडम वही गुड्डा वही है डोर हाथों में |
# फर्क इतना कि कुछ मजबूती हाथ आई है ||
Bahut khub.
ये आपके लेखन की खासियत है जो देखा ,सुना,सब आपकी कविता में सिमट आता है ...........
शुभकामनाएं..............
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