पाक तेरी नापाक निगाहें, क्या करता इन पर तू नाज़ |
यद्यपि शासन सुप्त हमारा , किंतु जनता जागृत आज ||
कायर सा ये कदम तुम्हारा , कुत्सित नीयत दिखाई है |
दहशत गर्दी खेल ये खूनी, मानवता बिसराई है ||
हिम्मत नहीं सामने आओ , क्यों ना आती तुमको लाज |
पाक तेरी नापाक निगाहें , क्या करता इन पर तू नाज ||
जो हिस्सा इस तन का ही है , छवि स्वच्छ है दिखलाता |
बाहर से भोंदू बनकर जो , आतंकी हमले करवाता ||
शान हमारी मुम्बई की जो , कहलाता है होटल ताज |
पाक तेरी नापाक निगाहें, क्या करता इन पर तू नाज़ |
हम शर्मिन्दा मेहमानों के प्रति , यह संस्कृति हमारी है |
खूनी होली खेलने वाले , क्या ये संस्कृति तुम्हारी है ||
सीधी अंगुली घी ना निकले , सीधे सीधे आओ ना बाज |
पाक तेरी नापाक निगाहें, क्या करता इन पर तू नाज़ |
जो अपनो से विछड गए हैं , ह्रदय चुभी उनकी यह पीर |
दहशत गर्दो ओ आतंकी , तुम लगते संवेदनहीन ||
जिंदा वे जो हैं संवेदी , तुम पत्त्थर या हो तुम लाश |
पाक तेरी नापाक निगाहें, क्या करता इन पर तू नाज़ |
यद्यपि शासन सुप्त हमारा , किंतु जनता जागृत आज ||
===प्रदीप मानोरिया