Friday, 10 October 2008

मुम्बई उनके बाप की

  • लोकतंत्र की नई परिभाषा, पेश-ऐ-नज़र है आपकी
  • वह बच्चे अब कहने लगे हैं, मुम्बई मेरे बाप की
  • सांस जब लोगे छोड़ोगे, मुंबई में जो आप की
  • उनका भी हिसाब दे देना, मुम्बई जिनके बाप की
  • रोटी खाई कितनी है और, साथ दाल या साग की
  • रखना होगा अब हिसाब क्यों? मुंबई उनके बाप की
  • बच्चो को शाला भेजो या, दफ्तर दुकान जो आपकी
  • कब आना जाना हुआ है कैसे ,मुंबई उनके बाप की
  • साँसे खाना आना जाना ,गणना सब होगी आपकी
  • सबका मालिक एक वही है, मुंबई जिनके बाप की
  • भाषाविद हे ज्ञानी कहना, भाषा क्या कहती आपकी
  • कौन तंत्र मुंबई में लागू मुम्बई जिनके बाप की
  • रचना प्रदीप मानोरिया

26 comments:

Shiv said...

मन से सच्चे भाव निकाले, अद्भुत कलम है आपकी.....

बहुत शानदार!

फ़िरदौस ख़ान said...

अच्छी तहरीर है...विषय भी उम्दा है...

शोभा said...

अच्छा लिखा है.

L.Goswami said...

achchha likha aapne badhayi..niymit likhen..

संजय बेंगाणी said...

क्या बात है! :)

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut badhiya likha.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर.
धन्यवाद

Anonymous said...

वाह वह इतना तज्जा विषय पर रचना वाह जैसे गर्म जलेबी हलवाई की

Anonymous said...

लाज़वाव पदीप जी आपकी लेखनी बहुत तीव्र है ताजी घटनाओं पर कविता पढने का मज़ा ही कुछ और है

kar lo duniya muththee me said...

सुंदर वाह वाह

kar lo duniya muththee me said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

GREAT EVER FRESH POEM HATS OFF SIR

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय मनोरिया जी /कल रात को तो मैं समाचार सुन ही रहा था और आज ही उस पर कटाक्ष / आपका तो यार जवाब ही नहीं है /जब प्रधान मंत्री भाषण देते थे तो उस भाषण को कई आई ऐ एस ऑफिसर और विद्वान् तैयार करते थे मगर श्री शरद जोशी उसमें से भी व्यंग्य निकाल लिया करते थे / आपने रोटी दाल ,दफ्तर -पढाई और साथ में सांसों का हिसाब /भाई सच कहूं शिवमंगल सिंह जी सुमन ने भी ""सांसों का हिसाब "" मांगा था =कितनी लीं कितनी छोडी =मगर आपकी रचना का तो जवाब ही नहीं है -इधर किसी के मुहं से वाक्य निकला नहीं कि आपकी कलम चली-

kumar Dheeraj said...

सबसे पहले आप मेरे ब्लांग पर आये इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । रही बात मुम्बई की बहुत दिनो से सोच रहा हूं कि मुम्बई पर लिखू । आपने इतना सुंदर लिखा है कि मन बदलता जा रहा है । मसलन मुम्बई राज ठाकरे के बाप का है । सियासत की आंधी ने राज ठाकरे को बिसात बिछाने का अच्छा मौका दे दिया है । लेकिन सवाल हर वक्त यह तलाशती रही कि आखिर मुम्बई किसकी है । मुम्बई पर प्राचीन काल की बात करे तो मौयॆ का शासन था । मौयॆ शासन के बाद इसका इतिहास बदला । वहां से लेकर गुजरात ,तमिलनाडु के लोगो ने भी मुम्बई को अपना आशियाना बनाया । इसी वक्त मुम्बई मे बाल ठाकरे जैसा एक राजनेता सामने आया जो घर का शेर ज्यादा दिखता है । जो भी हो उसने अपनी राजनीति को नई चमक देने के लिए मराठी का नारा दिया । गुजरात और तमिल में विकास की बयार चली लोग मुम्बई छोड़कर चले गए । उसके बाद विहार-यूपी के लोग वहां पहुंचे उसके बाद जो हुआ बताने की जरूरत नही है । मुम्बई की मंडी में अकेला शेर राज ठाकरे है । चाहे राजनीति हो या युध्द का मैदान भाषा से लेकर फिल्मो तक में उनका चलता है । दुकानदारो को किस भाषा में पोस्टर और बैनर लगाना है शेर साहब को तय करना पड़ता है । अब देखना तो यह है कि अपनी दुकान को कब तक चमका कर रखते है । या चाचा की तरह घर के डांन बनकर सिंमटे रहते है । फिलहाल तो मुम्बई उनका है । शेर क्या आप जितना वजन लगा ले ।

डॉ .अनुराग said...

पता नही ये देश किसके बाप का है.????

दिनेशराय द्विवेदी said...

सही कहा आप ने मुम्बई किसी की नहीं और सब की है।

महेंद्र मिश्र.... said...

बहुत सटीक आज मुंबई अपने बाप की कल सारा देश अपने बाप का . भाई लोकतंत्र में सबको कहने सुनने और देखने लिखने का अधिकार प्राप्त है जो जिसकी मर्जी हो अपना कहो.

Anonymous said...

सही में मज़ा आ गया.
क्या बात है मुंबई मेरे बाप की...
क्या बात है जनाब की...

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

wah, wah, wah.

जितेन्द़ भगत said...

very nice.

Manuj Mehta said...

साँसे खाना आना जाना ,गणना सब होगी आपकी
सबका मालिक एक वही है, मुंबई जिनके बाप की

bahut khoob pradeep ji
bahut hi shandaar rachna
vyang aapki kalam par aur bhi tez ho jata hai. bahut khoob.

Kavita Vachaknavee said...

सामयिक अभिव्यक्ति।

रज़िया "राज़" said...

मेरे ब्लोग पर आने कि लिये बहोत शुक्रिया।आप ने अपनी रचना में ब........हो.....त कुछ कहे/समज़ा दिया है। अब आगे हमारे पास शब्द ही नहिं रहे।आभार।

Asha Joglekar said...

मुंबई तो सबकी है अगर अपनी समझो वरना बापके तो किसी की नही है ।

अभिषेक मिश्र said...

साँसे खाना आना जाना ,गणना सब होगी आपकी
सबका मालिक एक वही है, मुंबई जिनके बाप की

Sahi kahne ke liye, tarif hai aapki
Achi kavita.Swagat.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

पढने को तो काफी कुछ मिलता रहता है....उन्हीं में से कुछ अच्छी चीजें भी मिल जाती हैं,आपका ब्लॉग पढ़ा...दरअसल कई बार तो ये भी समझ नहीं आता कि आख़िर किस-किस चीज़ की प्रशंसा करूँ...इतनी सी ही बात से समझ लीजै !!