Wednesday, 27 August 2008

ज़ज्बात

खामोश तन्हा रात में सदा किस की रही होगी , ये हवा की आवारगी की दस्तक रही होगी / वक्‍त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके । इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी / जामो मीना मय सभी लेकिन नहीं शुरूर था , इनायत-ऐ-साकी में आज कुछ कमी रही होगी / जीने की आरजू न रही इंतजार अब मौत का , उनकी दुआ में आज कुछ माकूलियत नहीं होगी / राज बे-परदा हुये राजदारी अब नहीं / अब निगाहों की शरम भी बाकी नहीं होगी / इशक की शै है कठिन कहकर दिखो हैरान तुम , खुद से तुमने कभी आशिकी की नहीं होगी / Pradeep Manoria

8 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

सही है,बेहतरीन लिखा.....

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.

Asha Joglekar said...

Bahot Khoob.

प्रदीप मानोरिया said...

आपकी मूल्यवान टिप्पणीयों के लिए हार्दिक धन्यबाद .....कृपया नियमित आगमन बनाए रखें

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

वक्‍त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके,
इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी|

बन्धु, बहुत खूब कही।
सप्रेम- कुन्दन कुमार मल्लिक,
काव्य पल्लव

"अर्श" said...

sundar rachna ke liye badhai ..........


regards
Arsh

amit said...

जामो मीना मय सभी लेकिन नहीं शुरूर था , इनायत-ऐ-साकी में आज कुछ कमी रही होगी /
आपके ब्लॉग पर पेज दर पेज मज़ा आ रहा है रूमानियत से भरी ग़ज़ल

Pradeep Kumar said...

वक्‍त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके । इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी

mere naam raashi mitra ! sach kehte ho aksar ham sab kuchh apne anukool hone per bhi jo kehnaa chahte hain wo nahi keh paate....

man ke bhaaon ko bahut achchhi tarah prakat kiya hai!