मयकशी
मयकशी कैसे कहेंगे साकी नहीं जब पास है /
आज मैखाने मैं रहा बुतखाने का अह्सास है /
घूँट दर घूँट बढते शुरुर के संग संग /
रगों में सनसनी का बढता हुआ अह्सास है /
घटा सावन की छाई है फ़िंजा भी काली काली है /
बरसती बूंद में पीना भी खुशनुमा अह्सास है /
महक है कच्ची मिट्टी की बारिश पहली पहली है /
और मय का महकना गुनगुना अहसास है /
अजनबी भी साथ बैठे जाम उनके पास है /
मिटता जाता फ़ासला नजदीक का अह्सास है /
प्रदीप मानोरिया 09425132060
2 comments:
सही है,बेहतरीन लिखा.....
अजनबी भी साथ बैठे जाम उनके पास है /
मिटता जाता फ़ासला नजदीक का अह्सास है /
आपके व्यंग के बाद जब ग़ज़ल पढ़ते हैं तो बड़ा सुखद विस्मय होता है
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