Wednesday, 27 August 2008

उम्मीद

नशे में गुम रहूं चाहत अरे नाराज़ साकी है / तमन्ना लुट रहीं देखो नहीं उम्मीद बाकी है / बडी शिद्दत से चाहा था मगर वो वेवफ़ा निकले , नसीबों की ये नाकामी, नहीं उम्मीद बाकी है / खुली आँखो का सपना मेरी बाँहों में बस जाओ , टूटना ख्वाब की फ़ितरत, नहीं उम्मीद बाकी है / जाम दर जाम सुबह से मुसल्सल चलते रहे लेकिन , गम हम भूल न पाते , नहीं उम्मीद बाकी है / मय में शुरूर तय तो था आया नशा नहीं , साकी हुई नाराज़ है ,नहीं उम्मीद बाकी है / धडकने दिल की तय हैं नहीं है एक भी ज्यादा , पास अब आखिरी धडकन ,नहीं उम्मीद बाकी है / झुकी पलकें हँसी लव पे हया गालों पे छाई है , प्यार अब हो ही जायेगा, यही उम्मीद बाकी है / Pradeep Manoria +919425132060

2 comments:

शोभा said...

धडकने दिल की तय हैं नहीं है एक भी ज्यादा ,
पास अब आखिरी धडकन ,नहीं उम्मीद बाकी है /
झुकी पलकें हँसी लव पे हया गालों पे छाई है ,
प्यार अब हो ही जायेगा, यही उम्मीद बाकी
bahut sundar likha hai. badhayi.

amit said...

झुकी पलकें हँसी लव पे हया गालों पे छाई है ,
प्यार अब हो ही जायेगा, यही उम्मीद बाकी है
यह ग़ज़ल अभी हिन्दयुग्म के पॉडकास्ट कविसम्मेलन भाग २ में सूनी थी बहुत यथार्थ है