Wednesday, 27 August 2008

अभिलेख खंडित भारी बरसात २००८

अबकी बार जब मेरे यहॉं पानी बरसा बाढ में हुआ तब्दील चौतरफा जा पहुंचा लंबे पेड भीग गये बरसातों में गलियॉं बदली नदी और नालों में जल के प्रवाह में मेरा घर भी डूबा बाढ के क्रम में ऑफिस भी कहॉं छूटा मैं हो गया बेघर और बेकार फिर नाव की सवारी छूट गई कार अब जब वारिश मुझसे दूर जा चुकी नहीं है हयाती अब एक भी बूंद की नहीं दिखता बादल अब कोई मेरी आत्मा पानी के लिये फिर रोई === प्रदीप मानोरिया

1 comment:

amit said...

नई कविता की फ्रेम में जो मेरी समझ से परे है फ़िर भी अच्छी है