अभिलेख खंडित भारी बरसात २००८
अबकी बार जब मेरे यहॉं पानी बरसा 
बाढ में हुआ तब्दील चौतरफा जा पहुंचा 
लंबे पेड भीग गये बरसातों में 
गलियॉं बदली नदी और नालों में 
जल के प्रवाह में मेरा घर भी डूबा 
बाढ के क्रम में ऑफिस भी कहॉं छूटा 
मैं हो गया बेघर और बेकार 
फिर नाव की सवारी छूट गई कार 
अब जब वारिश मुझसे दूर जा चुकी 
नहीं है हयाती अब एक भी बूंद की 
नहीं दिखता बादल अब कोई 
मेरी आत्मा पानी के लिये फिर रोई 
=== प्रदीप मानोरिया
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
1 comment:
नई कविता की फ्रेम में जो मेरी समझ से परे है फ़िर भी अच्छी है
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