गांगुली जी हमारे बहुत खास यार
एक बार हो गए गंभीर बीमार
फटाफट अस्पताल में दाखिल
कराया सुरक्षा कारणों से मुझे भी बुलाया
शुरू हो गया जांचो का सिलसिला
निदान के रूप में मधुमेह का रोग मिला
गांगुली जी थे लोकप्रिय और मिलनसार
मिलने आने लगे रोज दोस्त और रिश्तेदार
मुफ्त सलाह और नुस्खों का बह चला
सैलाब गुठली पत्ती काढा झाढा भिन्डी व कंडे की
राख गांगुली ने भी न देखा आव और ताव
नुस्खों की आजमाइश छोडा डाक्टर का इलाज़
दो चार महीने भी घर पर न रह पाये
दुबारा लादकर अस्पताल पहुंचाए
अबकी बीमारी ऐसी ज़ोर से बिगड़ी
कि गांगुली की जेब पर बहुत भारी
पडी अब मित्र महोदय हो गए हैं सावधान
नुस्खे टोटकों से पकड़े अपने कान
ये जो सारी आजमाइश है
उसकी रोशनी में ये गुजारिश है
यदि आपको अपना जीवन लगता है अमूल्य
तो कुशल चिकित्सक को समझो महत्वपूर्ण
नुसखों से दूर रहकर ही सफल होगा ये जीवन
चिकित्सक की सलाह पे अमल हो बस इतना ही है मेरा निवेदन
= प्रदीप मानोरिया अशोकनगर
3 comments:
बेहतरीन..आभार.
कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी.
लेकिन लोग कहा मानते हे, आप ने कविता के मध्यम से बहुत कुछ कह दिया.
धन्यवाद
भाई समीर जी सही कह रहे हे,आप यह कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी.
आप सहजता से उम्दा शब्दों में पिरोकर कठिन यथार्थ को भी कह लेते हैं . मैं तो आपका मुरीद हो गया
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