Wednesday, 27 August 2008

मयकशी

मयकशी कैसे कहेंगे साकी नहीं जब पास है / आज मैखाने मैं रहा बुतखाने का अह्सास है / घूँट दर घूँट बढते शुरुर के संग संग / रगों में सनसनी का बढता हुआ अह्सास है / घटा सावन की छाई है फ़िंजा भी काली काली है / बरसती बूंद में पीना भी खुशनुमा अह्सास है / महक है कच्ची मिट्टी की बारिश पहली पहली है / और मय का महकना गुनगुना अहसास है / अजनबी भी साथ बैठे जाम उनके पास है / मिटता जाता फ़ासला नजदीक का अह्सास है / प्रदीप मानोरिया 09425132060

2 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

सही है,बेहतरीन लिखा.....

amit said...

अजनबी भी साथ बैठे जाम उनके पास है /
मिटता जाता फ़ासला नजदीक का अह्सास है /
आपके व्यंग के बाद जब ग़ज़ल पढ़ते हैं तो बड़ा सुखद विस्मय होता है