अ तिथि अर्थात जिनके आने की कोई तिथि नहीं है
ऐसे ही अतिथि चार दिन से विराजमान हैं
हमारे घर में मेहमान हैं
हे अतिथि अब जाने की तिथि तो तय कीजिये
आप तो चैन से हैं हमें भी चैन दीजिये
चार दिन पहले जब आप आये थे
अन्दर से हम से कंपित फिर भी मुस्कराये थे
आपके पदार्पण का प्रयोजन समझ नहीं आया
मैंने भी नहीं पूछा आपने भी नहीं बताया
मेरी पत्नि ने अभिभूत भाव से नाश्ता बनाया
दोपहर की दाल रोटी की जगह लंच सजाया
शाम को अपना शहर घुमाया
मिष्टान्न और डिनर खिलाया
उम्मीद थी कि रात को सोने से पहले कुछ बोलेंगे
कब प्रस्थान करेंगे ये राज तो खोलेंगे
लेकिन आपने बिना राज खोले कहा गुडनाइट
किंकर्तव्य विमूढ़ से उठ गये हम दोनो हस्बैन्ड और वाइफ
आज तीसरा दिन बीत गया है
सब्र का बांध टूट गया है
बटुये में पडा आखिरी नोट फडफडाने लगा है
मेरा दिल भी जोरों से घबडाने लगा है
आपके कपडे भी धुलकर आ गये हैं
चादर भी धुलकर बदला गये हैं
आप आये थे उस दिन खूब ठहाके थे लगाये
अब हम हैं घबराये पर आप नहीं शरमाये
क्योंकि अब शेष कोई चर्चा भी नहीं है
और जा तिथि की गुत्थी भी सुलझी नहीं है
पत्नि इशारे से पूछती है जायेंगे या नहीं
मैं कंधे से जबाब देता हूं पता नहीं
अब तो मेरे खर्राटे भी आपको हिलाने में असमर्थ हो गये हैं
खिचडी दलिया चाय ब्रेड जैसे प्रयत्न भी व्यर्थ हो गये हैं
शालीनता की सारी सीमायें टूट चुकी हैं
मेरी पत्नि भी मुझसे रूठ चुकी है
हे अतिथि मुझ पर रहम खाओ
लौट जाओ लौट जाओ लौटजाओ
रचना प्रदीप मानोरिया
8 comments:
हा हा!! बहुत मजेदार!!
MADHYA PRADESH ME RAHTO HO,
KAVITA BADIYA KAHTE HO...
hi..........
sir u have very nicely explained about the guest. but u know when i would also be guest then this feeling not comes.
bahut achacha likha hai
bahut achhe vyangyakar hai aap.....
situation ko bayan karna to koi aap se poochhe.....
यह रचना पहले इबीबो पर भी पढी थी सदाबहार रचना पैना व्यंग
ब्लॉग विविधताओं से परिपूर्ण है |
व्यंग पैने है.
शब्दों के सुंदर गहने है ..
व्यंजना की गहराई है
पीडा अभिव्यक्ति में उतर आई है
साधुवाद आप की रचना पड़ने में आई है |
सुंदर व्यंग
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