Wednesday 29 September, 2010

अयोध्या का फ़ैसला

मज़हब वतन में कोई मोहब्बत से बडा नहीं है
इश्क इंसानी से बढकर इबादत कोई नहीं है
सियासत के ठेकेदार लडाते मज़हब के नाम पर
है इश्क अगर दिल में बस बात ये सही है
क्या फ़ैसला जमीं ये है राम या अल्ला की
दिल को मिला ले उससे जिससे तेरी लगी है
बंदा तू राम का या अल्ला का बन्दा तू है
सांसे है वही तेरी लहू भी तेरा वही है
=प्रदीप मानोरिया

3 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सामने वाले समझेंगे...???

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रदीप मानोरि्या जी
अच्छी रचना है …

मज़हब वतन में कोई मोहब्बत से बडा नहीं है
साहब , वतन में क्या संसार में मोहब्बत से बड़ा मज़हब नहीं !

मैं कहता हूं -
मज़हब तो देता नहीं , नफ़रत का पैग़ाम !
शैतां आदम - भेष में करता है यह काम !!

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Satish Saxena said...

बढ़िया सामयिक अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें मानोरिया भाई !