पान सो पदारथ सब जहान को सुधारत, 
दिमाग को बढावत जामें चूना चौकसाई है ।
सुपारिन के साथ साथ मसाला मिले भांत भांत, 
जामे कत्थे की रत्ती भर थोडी सी ललाई है ॥
बैठे हैं सभा मांहि बात करे भांत भांत,
थूकन जात बार बार जाने की बडाई है ।
कहें कवि किशोर दास चतुरन चतुराई साथ, 
पान में तमाखू काऊ मूरख ने चलाई है ॥ 
रचयिता : किशोर दास खण्डवा वाले 
प्रस्तुति : प्रदीप मानोरिया 
साभार  ; नई दुनिया इन्दौर  
1 comment:
बहुत खूब वर्णन किया है.. खंडवा वालों ने. किशोर कुमार जी की याद आ गयी.
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