Saturday 22 November, 2008

ज्योति = Pradeep Manoria

एक दिया जीवन का ज्योतिर्मय /
पलते पढते बढते जलता रहा / 
तीन दशक से कुछ ज्यादा / 
जीवन पथ पर हुआ अनुबन्धित विवाह संस्था में /
दो नन्ही ज्योति और हुई प्रस्फ़ुटित /
चलता रहा जीवन घडी के पेन्डुलम के साथ /
परिजन पुरजन का प्रेम ले आया पीहर तक /
मेल, मिलाप ,प्रेम ,ताने ,मिलने के बहाने /
अचानक फ़डफ़डाई और ज्योति बुझ गई /
देखते रहे वो ही परिजन दिये की ज्योति का बुझ जाना /
दो नन्ही ज्योति इस ख्याल से गुम /
मुख्य ज्योति के विलय से ऑंखे नम /
चेतनज्योति गई फ़िर किसी दिये में / 
उसी धारा में नये दिये की ओर /
दिखता नहीं संसार का कोई छोर / 
वह ज्योति जाते हुये छोड गई इक सवाल /
ढूंढना होगा हमॆं हल , क्या है संसार का सार ?
जाननी होगी हमें संसार की वास्तविकता /
क्या है हमारा स्वरूप कौन हैं हम ?
कब रूकेगा ये सिलसिला ?
चेतन अविनश्वर तत्व 
क्यों इस नश्वर देह की गुलामी में फ़ंसे है ?
प्रदीप मानोरिया 09425132060

20 comments:

शोभा said...

जाननी होगी हमें संसार की वास्तविकता /
क्या है हमारा स्वरूप कौन हैं हम ?
कब रूकेगा ये सिलसिला ?
चेतन अविनश्वर तत्व
क्यों इस नश्वर देह की गुलामी में फ़ंसे है ?
waah bahut achha likha hai.

नीरज गोस्वामी said...

बहुत भाव पूर्ण रचना है आप की...शब्द चयन बेहद खूबसूरत है...बधाई...
नीरज

Smart Indian said...

बहुत मार्मिक और मर्म से भरपूर कविता है. कवि की सफलता भावों की सुन्दरता के साथ पाठकों के ह्रदय तक पहुँचने में भी है, बधाई!

Anonymous said...

एक बार भारत सरकार से फिर से पुराना सवाल -"भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में छुपाये गए काले धन के बारे में किस दिन भारत सरकार स्विस सरकार से सूचना लेकर उसे सार्वजनिक करेगी?"

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर व भावपूर्ण !
घुघूती बासूती

डॉ. मनोज मिश्र said...

जाननी होगी हमें संसार की वास्तविकता /
क्या है हमारा स्वरूप कौन हैं हम ?
कब रूकेगा ये सिलसिला ?
चेतन अविनश्वर तत्व
क्यों इस नश्वर देह की गुलामी में फ़ंसे है ? ...............इन लाइनों में यथार्थ -एवं सत्य की स्थापना है .बहुत गंभीर रचना है .ऐसी रचनाओं के लिए अग्रिम शुभकामनायें .

विवेक सिंह said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

परमजीत सिहँ बाली said...

रचना सुंदर है|बधाई स्वीकारें|

Anil Pusadkar said...

सुँदर.बधाईन आपको.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

bahut sundar rachana.

राज भाटिय़ा said...

एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति,बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति. सोचने को विवशा करती.

BrijmohanShrivastava said...

पूरा दर्शन भर दिया जीवन का मनोरिया जी थोड़ा मुझे समझने में जरूर देर लगी किंतु जहाँ तक में समझ पाया हूँ जीवन की नश्वरता के साथ इसमें एक ह्रदय विदारक घटना का भी उल्लेख हैं /जब इस घटना को आपने अश्रुपूरित नेत्रों से शब्दों में पिरोया होगा उस वक्त एक एक शब्द लिखने में आपकी मानसिक पीडा को कोई समझ पाता/ यह प्रकृति है यही एक संसार है /हर किसी की द्रष्टि इधर जाती भी नहीं है ""कहीं एक दूल्हा सजा जा रहा है ,कहीं पर जानना उठा जा रहा है /इसका कोई विकल्प भी नहीं है /जिसका गम वही समझ सकता है
यदि ज्योति बुझ जाने का कारण हो तो निवारण हो लेकिन यदि नियति है तो कोई क्या कर सकता है हाँ उन दो नन्हीं ज्योति के वाबत कुछ सोचा जा सकता है -और यदि किसी दुर्घटना में ज्योति बुझी या बुझाई गई है तो वास्तब में समाज को इधर सोचना ही होगा आखिर हम कब तक आदम युग में जीते रहेंगे

Alpana Verma said...

भावपूर्ण रचना.बहतु कुछ ख़ुद में समेटे हुए..-इतनी सुंदर रचना के लिए बधाई

Anonymous said...

जीवन के कटु सत्य का दर्शन एक ही रचना में करा दिया, धन्यवाद

Aruna Kapoor said...

वाताविकता का दर्शन सहज और सुंदर शब्दों में आपने कराया है!....मेरे ब्लॉग पर उपस्थिति के लिए धन्यवाद्!

अभिषेक मिश्र said...

जाननी होगी हमें संसार की वास्तविकता /
क्या है हमारा स्वरूप कौन हैं हम ?
निःसंदेह, भावपूर्ण रचना.

मुकेश कुमार तिवारी said...

भाई जी,
दर्द अपनी ऊंचाईयों को छूता है, आँखे नम सी हो आई हैं.
एक भाव प्रधान रचना(?) के लिये.......

मुकेश कुमार तिवारी

sanjay jain said...

मृत्यु एक शास्वत सत्य है /जिसे जीत पाना मुशिकल हे नहीं नामुमकिन है /जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना भी है शायद इसी बात को हम अभी तक भूले हुए हैं /इसी लिए मृत्यु को एक मातम के रूप में मानते आरहे हैं /जिस प्रकार व्यक्ति अपनी यात्रा से पूर्वतैयारी करता है उसी प्रकार यदि व्यक्ति मृत्यु पूर्व अपने कर्मों का हिसाव देने की तैयारी करे तो मृत्यु को एक महोत्सब के रूप में मना सकता है /
मेरे अपने ब्लॉग पर आज हसरी हनुमान सिंह गुर्जर की रचना जो मुनि तरुण सागर जी के स्वास्थ्य कामना हेतु लिखी है पढने का कष्ट करें /

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

marm men dard ka sparsh deti rachanaa ........
sundar upmanon ka prayog ...........
badhai