Wednesday, 8 October 2008

शेयर बाज़ार

  • शेयर बाजारी कारोबारी टूट गयी सब आस
  • बनी चवन्नी जो था रुपया रोऊँ किसके पास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • संभल न पाया गोता खाया महल बना जो ताश
  • बड़ों बड़ों के छक्के छूटे चेहरा हुआ उदास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • तीव्र गति से मंद मति से चाहें करें विकास
  • ओंधें मुंह बाज़ार पडा है कारण क्या है ख़ास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • मंदी हालत भाग्य को लानत हुया ये सत्यानाश
  • धंधा ये आराम का जंचता अन्य न आता रास
  • अरे बुश की बलिहारी है चोट ये बड़े करारी है
  • प्रदीप मानोरिया संपर्क ०९४२५१३२०६०

28 comments:

Anonymous said...

very nice! hahahahaha

Anonymous said...

very cool.

Anonymous said...

well its nice to know that you have great hits here.

Anonymous said...

not bad.

Anonymous said...

very nice! hahahahaha

Shiv said...

वाह!
कमाल की कलम है आपकी.
प्रदीप जी, शेयर बाज़ार की हालत पर बढ़िया कविता लिख डाली..बहुत सामयिक.

Manuj Mehta said...

संभल न पाया गोता खाया महल बना जो ताश
बड़ों बड़ों के छक्के छूटे चेहरा हुआ उदास
आपी लेखनी बहुत ही शानदार है, बहुत ही सटीक बात कहने में आप सक्षम, एक और बार बधाई स्वीकारें

अभिषेक मिश्र said...

Kafi saral shabdon mein mahatwapurna baat kahi aapne,dhanyawad aur swagat.

अभिषेक मिश्र said...
This comment has been removed by the author.
BrijmohanShrivastava said...

आज ये कौन कौन कमेन्ट दे गए आपकी रचना पर /एक बात और ये जो लिखा रहता है की == पोस्ट हेज बीन रिमूव बाई आथर "==इसका मतलब क्या होता है और ये क्यों होता है/
चोट बडी करारी है में सम्हल न पाया गोता खाया और तीब्र गति से मंदमति बहुत सुंदर बन पड़े हैं

राज भाटिय़ा said...

वाह क्या बात है . अति सुन्दर कविता
धन्यवाद

स्पंदन said...

पैसा-पैसा करने की होड़ मची है आज, कैसे दो के दस करें होता यही प्रयास. अति सुंदर दर्शन.... बधाई

तीसरा कदम said...

samanya logo ke dard ko ubhara gaya hai. achha prayash hai. jari rakhe.
badhai swikar kare.

तीसरा कदम said...
This comment has been removed by the author.
आत्महंता आस्था said...

Bahut achchhe dhang se kaha aapne.

प्रमोद said...

vaah-vaah, hasya ke pravah ke sang halke vyangya se samprikt, samyaik vishay se yukt kavita hetu badhai ke paatr hain aap. Padharen http://hindikechirag.blogspot.com

Anonymous said...

Bahut khoob likha hai, sawal to abhi bhi sabhi dhoondh rahe hain Akhir is sab ka kaaran kya hai.....kya koi jhari?

mhare blog me padharne ke liye dhanyvaad

Smart Indian said...

बहुत सटीक लिखा है मनोरिया जी!

योगेन्द्र मौदगिल said...

Badhai
nirantarata banae rakhe

रवि रतलामी said...

शुरू की पांच टिप्पणियाँ स्पैम कमेंट हैं. अत: अपने ब्लॉग में कमेंट मॉडरेशन लागू करें व ऐसी स्पैम टिप्पणियों को रिजेक्ट करें.

बढ़िया व्यंग्य

Anonymous said...

achchha hai, parantu ek bat kahna chahta hu jaisa ki mujhe mahsoos hua,ye rachana aapki pichhali rachnao ke mukable kamtar hai.

----------- Vishal

makrand said...

मंदी हालत भाग्य को लानत हुया ये सत्यानाश
धंधा ये आराम का जंचता अन्य न आता रास
bahut umdaa
bush ka fanda

Unknown said...

very nice thoughts smart and timely comments we enjyoed

kar lo duniya muththee me said...

aap to dhunaadharr likhte ho mazaa gaaya sir ekdum bindaas

Anonymous said...

ग्लोबलाइजेशन के खतरे भी ग्लबलाइज्ड ही होते हैं । जब तूफान आता है भयंकर ही आता है ।
अच्छा लिखा है । - योगेन्द्र

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।

बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

प्रदीप जी, शेयर बाज़ार की हालत पर बढ़िया कविता
www.rashtrapremi.com

DEEPAK KUMAR said...

PRADEEPJI, SHARE BAZAAR PAR AAPNE BAHUT ACHCHHI KAVITA LIKHI HAI.