Sunday 27 July, 2008

ज़ज्बात

खामोश तन्हा रात में सदा किस की रही होगी , ये हवा की आवारगी की दस्तक रही होगी / वक्‍त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके । इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी / जामो मीना मय सभी लेकिन नहीं शुरूर था , इनायत-ऐ-साकी में आज कुछ कमी रही होगी / जीने की आरजू न रही इंतजार अब मौत का , उनकी दुआ में आज कुछ माकूलियत नहीं होगी / राज बे-परदा हुये राजदारी अब नहीं / अब निगाहों की शरम भी बाकी नहीं होगी / इशक की शै है कठिन कहकर दिखो हैरान तुम , खुद से तुमने कभी आशिकी की नहीं होगी / Pradeep Manoria (Cell No. +919425132060)

2 comments:

Nitin Anand said...

bahot khoob kahi hai !!

seema gupta said...

वक्‍त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके ।
इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी /
" sach khai hai, bhut sunder words hain"

waqt or mauke ke to vfadaree rhee,
magar majubr hum hue to hue yun ke,
sharmo hya kee sath mey pehredaree rhee.....

Regards