ज़ज्बात
खामोश तन्हा रात में सदा किस की रही होगी ,
ये हवा की आवारगी की दस्तक रही होगी /
वक्त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके ।
इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी /
जामो मीना मय सभी लेकिन नहीं शुरूर था ,
इनायत-ऐ-साकी में आज कुछ कमी रही होगी /
जीने की आरजू न रही इंतजार अब मौत का ,
उनकी दुआ में आज कुछ माकूलियत नहीं होगी /
राज बे-परदा हुये राजदारी अब नहीं /
अब निगाहों की शरम भी बाकी नहीं होगी /
इशक की शै है कठिन कहकर दिखो हैरान तुम ,
खुद से तुमने कभी आशिकी की नहीं होगी /
Pradeep Manoria (Cell No. +919425132060)
2 comments:
bahot khoob kahi hai !!
वक्त था मौका भी था फ़िर भी बयाँ न कर सके ।
इजहारे इश्क में शायद कुछ हया रही होगी /
" sach khai hai, bhut sunder words hain"
waqt or mauke ke to vfadaree rhee,
magar majubr hum hue to hue yun ke,
sharmo hya kee sath mey pehredaree rhee.....
Regards
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