Monday 13 October, 2008

कलेंडर (Calendar)

  • विषय, वर्ग और आदतों को बढावा देने नए प्रकार का कलेंडर बुना
  • हर एक के दिवस को मनाने कोई न कोई दिन चुना 
  • इस प्रकार राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये विभिन्न दिवस मनाये जाते है 
  • वे कभी शिक्षक दिवस, हास्य दिवस या मातृ दिवस कहलाते है 
  • किंतु यह बिडम्बना है आज की
  • अथवा खुमारी है समाज की 
  • अब स्वयं शिक्षक ही शिक्षक दिवस मनाता है 
  • स्वयं ही दरी जाजम और कुर्सी बिछाता है 
  • इन्जीनीर्यस ही इन्जीनीर्यस डे का करते हैं आयोजन 
  • एक मुख्य अतिथि कुछ जलपान या भोजन 
  • हास्य दिवस पर हंसने वाले इकठ्ठे हो जाते है
  • हंसने वालों को हंसने के फायदे समझाते हैं 
  • हिन्दी दिवस की भी भिन्न नही बीमारी है 
  • इसे मनाने की कलमकार की ही जिम्मेदारी है 
  • वे कलमकार श्रोताविहीन कक्ष में करते हैं विचार
  • परस्पर हिन्दी का दुखडा रोकर कर लेते हैं स्वल्पाहार  
  • गर ऐसा ही आलम रहा बरकरार 
  • सोता रहा समाज और ऊंघती रही सरकार 
  • तो फ़िर शहीद दिवस कैसे मनाया जायेगा ?
  • इसे मनाने क्या कोई शहीद यहाँ वापिस आयेगा ?  
  • रचना प्रदीप मनोरिया

17 comments:

Smart Indian said...

सत्य वचन!

Anonymous said...

bilkul theek likha hai aur hriday vidarak satya bhi

Shiv said...

प्रदीप भाई बधाई है, आपने कमाल की रचना पढ़वाई है.
शानदार

Manuj Mehta said...

sach kahoon pradeep ji bahut hi shandaar likha hai aur jab main isey padh raha tha to aisa laga ki sakshaat aap mujhe yeh suna rahe hai, ek alag sa rythm hai isme, yun laga ki main kisi kavi samelan mein aapko baitha sun raha hoon. dhanyawad

BrijmohanShrivastava said...

वाह प्रदीप जी /बहुत अच्छी बात कही /यही आलम हो गया है /हर दिवस मनाने का /बस दो चार बातें कहीं स्वल्पाहार किया और जैसे कोई बोझ निबटा दिया हो ,अब अगले साल देखेंगे

makrand said...

परस्पर हिन्दी का दुखडा रोकर कर लेते हैं स्वल्पाहार
bauht accha vayang

hindustani said...

aap bhoot aacha likhte hai.
dhanya vad jo aapne mera blog pada

दिगम्बर नासवा said...

आज की परिस्थितियों का सजीव चित्रण
सटीक टिपण्णी, बहुत बहुत बधाई

Vinay said...

आपका निमंत्रण था सो आ गये, तो लो कहते हैं कि यह काव्य ताज़ा परिवेश को सन्दर्भित करता है!

RC Mishra said...

अच्छा लिखा हैआपने बधाई स्वीकार करें।

भूतनाथ said...

बहुत कमाल का लेखन है भाई ! हम तो सीधे नर्क से आ रहे हैं और टिपणी करने आ पहुंचे ! वैसे ऊपर नर्क द्वार से ही हमने ये आपकी अति उत्तम रचना पढ़ ली थी ! बधाई स्वीकार कीजिये !

Mumukshh Ki Rachanain said...

प्रदीप जी,
कमाल की सोंच, और उतनी ही सुंदर प्रस्तुति.
बधाई स्वीकार करें.

चन्द्र मोहन गुप्त

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही रोचक ओर व्यंगतम.
धन्यवाद

Anonymous said...

बहुत ही रोचक और शानदार, धन्यबाद,

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

divason per achcha kataksh kiya hai aapney.

amit said...

वाह प्रदीप जी समा बाँध दिया आपने तो !!!!

कृषि समाधान said...

Pradeep Ji
Greetings to You
It is a great sattire.Congratulations to You.Thank you for visiting mazedarindianfoodconcept.blogspot.com. There is onme more article published for you.
Avtar Meher Baba Ki Jai
Dr.Chandrajiit Singh
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