Wednesday 1 October, 2008

हिन्दी का चिंतन

  • कहाँ खड़ी भाषा ये हिन्दी वह कितनी समृद्ध हुई
  • कितने पुरूष हैं भाषाप्रेमी कितनी महिलायें प्रबुद्ध हुई
  • खडा प्रश्न यह अनसुलझा सा और सदा ही खडा रहे
  • सृजन साहित्य का करने वाला और मनीषी यही कहे
  • चिंतन नहीं विषय का किंतु चिंता भाषा की बनी रहे
  • वक्ता लेखक तो बढ़ते जाते श्रोता पाठक की कमी रहे
  • तो भी करें आकलन इसका क्योंकि अवसर आया है
  • सब जानें हमने भी देखो हिन्दी दिवस मनाया है
  • साधन संचारों के फैले दुनिया मुठ्ठी में आयी है
  • इंटरनेट पर बन्धु देखो हिन्दी ने धूम मचाई है
  • प्रगति अरे हिन्दी भाषा की बिल गेट की बलिहारी है
  • सार्वभौम कर लिपि हिन्दी को जग के बीच उछारी है
  • गूगल जैसे महारथी से कार्य और आसान हुआ
  • इधर लिखा अगले क्षण में दुनिया को वह उपलब्ध हुआ
  • प्रिंट मीडिया से आगे यह नेट मीडिया जायेगा
  • हिन्दी का प्रचार हो व्यापक समृद्धि इसे दिलाएगा रचना प्रदीप मानोरिया
  • Image Courtsey Google image search

13 comments:

Manuj Mehta said...

सृजन साहित्य का करने वाला और मनीषी यही कहे
चिंतन नहीं विषय का किंतु चिंता भाषा की बनी रहे
वक्ता लेखक तो बढ़ते जाते श्रोता पाठक की कमी रहे
तो भी करें आकलन इसका क्योंकि अवसर आया है
सब जानें हमने भी देखो हिन्दी दिवस मनाया है

bahut khoob kaha manoria ji, sach mein bahut gehri baat kahi hai.
ek achi rachna ke liye badhai
manuj mehta

महेंद्र मिश्र.... said...

बहुत बढ़िया . बधाई

Anonymous said...

वाह भाई आपने तो आशु आशु कविता लिख दी है

Anonymous said...

bahot hi sahi shbad chtran, dhnyabad

राज भाटिय़ा said...

मजा आ गया यह पक्तियां पढ कर.
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का अनवरत पर आना अच्छा लगा। आप भी अपने ब्लाग पर बहुत सुंदर काम कर रहे हैं।

Dileepraaj Nagpal said...

आपका ब्लॉग पढ़ा। काफी अच्छा लगा। बधाई।

अभिषेक मिश्र said...

Yahi to hindi ki takat hai. Har madhyam ke anukool swayn ko dhalte hue aage badhte jana. Achi kavita, badhai.

वर्षा said...

ब्लॉग ने हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए नया रास्ता खोल दिया है। जय हिंदी।

BrijmohanShrivastava said...

अति सुंदर प्रिंट मीडिया और नेट=चिंतन नहीं चिंता,तुम्हारी लाइनों को बहुत ही ध्यान पूर्वक पढ़ना पढता है =पहली बात हिन्दी ,दूसरी बात अमिताभ , तीसरी बात माफी ,और चौथी बात ....क्या सेलेक्टेड चित्र लगाया है यार ये ऐसी बातें आपके दिमाग में आ कैसे जाती हैं /
ई बात म्हारे बतइ दो के जद में तमारो नाम म्हारे ब्लॉग में शामिल करना चाहूँ तो म्हारे कुन कुन से बटन दबानो पडे ने कहाँ पे तमारो नाम लिखनो पड़े

हर्ष प्रसाद said...

वाह प्रदीप साहब, समां बाँध दिया. मेरे पोस्ट पर भी पधारें.

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

टिप्पणी हेतु आभारी हूँ |हिन्दी के सर्वश्रेठ रूप के लिए " गौरा पन्त शिवानी "को अवश्य पढ़ें | हृषिकेश से ज्यादा नही जरा सा ऊपर जाने पर 'गंगा ' के प्रवाह की निरंतरता एवं जल का जो निर्मल रूप अनुभव होता है वही भाषा की निर्मलता ,तरलता एवं गतिशील निरंतरता "शिवानी' जी के लेखन में है ;इसको न तो वर्णित किया जा सकता है और न तो सुन कर समझा जा सकता है केवल 'उनका'लेखन पढ़ कर ही अनुभव किया जा सकता है

Renu Sharma said...

mnoriya ji , mera hausala afjai ke liye shukriya .