Tuesday 23 December, 2008

दोस्त और बचपन की यादें = Pradeep Manoria

दोस्त तेरी याद बहुत आती है / 
यादें तेरी या उन लम्हों की 
जो बिताये थे तेरे साथ बचपन में /
आज भी ताजा हैं वे याद पचपन में /
दोस्त तेरी याद बहुत आती है /  
स्कूल से गोल मार अमरूद के बगीचे में /
दौड्ते दौड्ते जामफ़ल तोडते / 
माली का डर भी मन में भरा हुआ / 
पेड से गिरने के डर से डरा हुआ / 
यादें आज भी मन को हर्षाती हैं / 
दोस्त तेरी याद बहुत आती है /  
स्कूल के बाहर चाट के ठेले /
बेर कि डलिया और केले / 
खाते खिलाते चिढाते खिलखिलाते / 
पेड की छॊंव मे बैठे बतियाते /
बचपन की बातें भूल नहीं पातीं हैं 
दोस्त तेरी याद बहुत आती है / 
..............प्रदीप मानोरिया 
094-251-32060

25 comments:

Smart Indian said...

excellent, nostalgic poem.

seema gupta said...

बचपन की बातें भूल नहीं पातीं हैं
दोस्त तेरी याद बहुत आती है /
" सच में बचपन की यादो को ताजा कर दिया आपने"
Regards

विवेक सिंह said...

अच्छी लगी कविता . बच्चों का चुलबुलापन अच्छा लगता है .

मुकेश कुमार तिवारी said...

कविता सीधे दिल की गहराईयों तक जाती है
जो भी भूल चुके हैं बाहर निकाल लाती है

अमरूद / जामुन / बेर / कबीट / इमली / चने / ककड़ी / कंचे / गेंद / बस्ता / टाटपट्टी / कट्टी-बुच्ची और ना जाने क्या-क्या?

गुजरा जमाना याद दिलाने का धन्यवाद.

मुकेश कुमार तिवारी

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब प्रदीप जी
बचपन की यादों में जो ताजगी है
आप की कविता मैं वो ही नज़र आती है
सुब्दर रचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aapne to mujhe apne college ke din yaad dila diye jab main amrood todkar bhaga tha aur kooda to ek motessoriiiiii skool me gira jahan sirf mahilayen padhati thin.

Anonymous said...

aapki kavita ko padkar bachpan ki yaaden taaza ho gayi

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

प्रदीप जी,
बचपन के निश्छल दोस्त और उनकी दोस्ती ही सच्ची होती है। बड़े होने पर बने या बनाये गये दोस्त ज्यादातर मतलब साधने के लिये काम आते हैं।

Anil Pendse अनिल पेंडसे said...

बचपन याद दिला दिया ! धन्यवाद्

Unknown said...

भाई बहुत अच्छा कविता!आपके विचारों का क्या कहना!कोई जबाब नही!

मधुकर राजपूत said...

उम्र कोई भी हो पर स्कूल के दिन नहीं बदलते, सबके एक से ही, नॉस्टालजिया के तकिए की सीवन खोल दी आपने, नींद नहीं आएगी आज। श्रेष्ठ रचना वही होती है जिससे पाठक को एम्पैथी हो जाए। उत्तम।

Alpana Verma said...

बचपन की यादें!पेडों से फल तोड़ना [चोरी से]शायद सभी बच्चों के शौक में रहा होगा..

स्कूल के संगी साथी कब भूल पाते हैं..बहुत सुंदर कविता..अपने साथ ले गयी भूतकाल में...

राज भाटिय़ा said...

बचपन की बातें भूल नहीं पातीं हैं
दोस्त तेरी याद बहुत आती है /
सच मै, दिल करता है वो दिन फ़िर से लोट आये.
आप का धन्यवाद

pANKAJ said...

श्रीमान जी आप मेरे ब्लाग पर पधारे यह मेरा सौभाग्य है आगे भी आशा है आप जरुर आयेगे

अभिषेक मिश्र said...

सही कहा आपने. बचपन की बातें और दोस्तों को कहाँ भूल पाते हैं हम!

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

pradeep ji ,mujhe nahin maloom ki meri kalam men roshanaai hai ya bhavanaayen ......par aapka andaz hamesha hi nirala hota hai ...

bas itanaa hi kahanaa hai-----aaya hai mujhe fir yaad wo zalim guzara zamaana bachapan ka - - - - -

christmas ki hardik shubh kamanaayen

Jayshree varma said...

आपने तो सभी को अपने बचपन की याद दिला दी..... हम चाहें जितने बडे हो जायें लेकिन बचपन की यादों को याद करते ही फिर से छोटे हो जाते है..... हमने भी बचपन में खूब शरारत की थी.... लेकिन शहर में गांव की तरह मजा नहीं आता...

kumar Dheeraj said...

प्रदीप जी आप की कविताई सोच का मै कायल हूं ।आपने मुझे बचपन का याद दिला दिया । लगता है मै गांव में अपने साथियो के साथ धूम रहा हूं ।मेरी नई रचना जरूर पढ़े । धन्यवाद

विनय राजपूत said...

bachapan ki yad ko yaadaa kar diyaa aap ne

विनय राजपूत said...

neta ji samjho ......... meri nayi rchana aap aapna maat de

Prakash Badal said...

मनोरिया जी,

आपने बचपन और गांव के मेले दोनो याद दिला दिये।

बढ़िया रचना।

kumar Dheeraj said...

प्रदीप जी अति सुन्दर कविता लिखी है आपने । आपकी कविता ने बचपने के यादो को ताजा कर दिया है । लगता है फिर से मै उस स्थिति में धूमने लगा हूं । आपके चिंतन का मै कायल हूं । लिखते रहिए । आपको धन्यवाद

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Pradeep ji,
Apne dost aur bachpan kee yaden bahut sundar kavita likhi hai.badhai.Mere blog par ane ke liye dhanyavad.

रचना प्रवेश said...

बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...तब सिर्फ खिलोने टूटा करते थे ,पाँव मार पानी में खुद को ही भिगोया करते थे ...अब तो एक आंसू भी रुसवा कर जाता हे ,बचपन में तो दिल खोल कर रोया करते थे ...

रचना प्रवेश said...
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