Tuesday, 25 November 2008

चुनावी चौपाइयां

दंगल की घड़ी अन्तिम  आई , नेताओं ने रार मचाई |
मतदाता ने मौन है धारा, नेता चाहे वोट तुम्हारा  |
नागनाथ कोई साँप नाथ है , कोई फूल तो कोई हाथ है |
बैठ हाथी पर कुछ धाये, कोई कहीं साइकिल ही चलाये |
दल दल से हैं दूर कुछ नेता , वे निर्दलीय कहाते नेता |
चिह्न नगाडा सूरज तारा , वे भी मांगे वोट तुम्हारा |
इक दूजे पर पंक उछालें , अपनी गलती स्वयं दबा ले |
वादे नित नए रोज सुनाएँ, अपनी ढपली राग बजाएं |
मतदाता राजा बन घूमे, प्रत्याशी क़दमों को चूमे |
है वो सिकंदर जो है जीता ,हारा हुआ गम अश्क है पीता |
जीते जो घर बजे नगाडा , कितु वोटर सदा ही हारा  |
प्रदीप मानोरिया 

22 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बहुत सम सामयिक और मनोरंजक रचना...सारी चौपाईयां कमाल की हैं...मजा आ गया...
नीरज

Anil Pusadkar said...

वाह,सुन्दर.

Himanshu Pandey said...

समसामयिकता को कविता का संस्कार देकर उत्तेजना भर देते हैं आप . धन्यवाद .

राज भाटिय़ा said...

जीते जो घर बजे नगाडा , कितु वोटर सदा ही हारा |
सॊ बातो की एक बात, बहुत ही सुनदर रचना है आप की.
धन्यवाद

मुकेश कुमार तिवारी said...

दोपायो की कथा चौपाई में
क्या बात है प्रदीप जी

seema gupta said...

वादे नित नए रोज सुनाएँ, अपनी ढपली राग बजाएं |
मतदाता राजा बन घूमे, प्रत्याशी क़दमों को चूमे |
बहुत सुंदर अभीव्यक्ति
Regards

Manuj Mehta said...
This comment has been removed by the author.
Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय मनोरियाजी /राजस्थान की झालावाड तहसील के पिडावा में हूँ /कल श्री संजय जैन से बहुत देर तक आपकी चर्चा होती रही /आध्यात्मिक प्रब्रत्ति के है काफी अध्ययन किया है /मैंने उन्हें आपका दिवाली के अवसर पर पोस्ट किया हुआ स्तोत्र भी पढ़वाया /
नागनाथ सांपनाथ की बात बिल्कुल सही लिखी हैअपनी अपनी ढपली अपना अपना राग मुहाबरा बहुत सही जगह पर फिट किया है /वोटर"" सदा हारा "" कितने कटु सत्य के अभी व्यक्ति है /
यार मनोरिया जी एक बात मेरी समझ में नहीं आती ये चुनाव है क्या ?चुनाव क्षेत्र "रणभूमि" प्रत्याशी ""योद्धा " चुनाव नीति "रणनीति " समर्थक "बाहुबली "" ह्रदय परिवर्तित ""बागी ""
ह्रदय परिवर्तन =तुलसीदास जी का उनकी पत्नी ने ,बाल्मीकि का सप्तऋषियों ने किया /इनका कौन कर देता है टिकिट नहीं मिलने पर ,जीत कर बहुमत देने पर एक दम ह्रदय परिवर्तन /वास्तब में ही हो जाया करता है या कोई ब्लोक खुल जाते हैं -रक्त के जमे हुए थक्के

Anonymous said...

मनोरंजक रचना!सभी चौपाईयां अच्छी लगी!

Anonymous said...

maanniya, ek neta chalisa likh den to aur achcha lage.

Aruna Kapoor said...

पढकर इतना मजा आया कि...क्या बताएं सर।

Alpana Verma said...

बहुत ही shukshmata से स्थिति का अवलोकन किया है--सामायिक aur rochak रचना.
सभी चौपाईयां कमाल की हैं.

डॉ .अनुराग said...

क्या चोपाई है भाई ?कही चुनाव वालो ने हाइजेक कर ली तो ?

sarita argarey said...

कटु सत्य और सामयिक । चंद लाइनों में आपने राजनीति की सच्चाई को उघाड कर रख दिया ।

Smart Indian said...

आपका जवाब नहीं है मनोरिया जी!

Anonymous said...

आपकी रचना राजनीति की कड़वी सच्चइयो को बया करती है.....सच ही तो है ,जीते कोई भी वोटर तो सदा ही हारता है

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

bahut achchha
badhai

Unknown said...

सभी चोपाई कमल की है भाई,क्षमा चाहता थोड़ा बीजी चल रहा हूँ इसके लिए संपर्क नही बना पा रहाहूँ,

Shishir Mittal (शिशिर मित्तल) said...

पढ़ कर आनंद आया. बहुत अच्छे प्रयास हैं आपके.

राज भाटिय़ा said...

मनोरिया जी बहुत सुंदर ढंग से आप ने सारे भेद खोल दिये.
धन्यवाद

शोभा said...

इक दूजे पर पंक उछालें , अपनी गलती स्वयं दबा ले |
वादे नित नए रोज सुनाएँ, अपनी ढपली राग बजाएं |
मतदाता राजा बन घूमे, प्रत्याशी क़दमों को चूमे |
है वो सिकंदर जो है जीता ,हारा हुआ गम अश्क है पीता |
जीते जो घर बजे नगाडा , कितु वोटर सदा ही हारा |
वाह क्या खूब लिखा है।