- कोई ना कोई तो ऐसी सूरत है
- जिससे ये हेंड वाश जरूरत है
- हाथ धोना सफाई की एक आदत है
- हाथ धो कर पीछे पढ़ना एक कहावत है
- भले लोगों में ये हो न हो हाथ धोने की आदत
- किंतु चरितार्थ खूब होती है हाथ धोकर पीछे पड़ने की कहावत
- मंदी शेयर बाज़ार के पीछे हाथ धोकर पडी है
- मंहगाई भी हाथ धोकर आसमान पर जा चढी है
- टिकिटअर्थी अपने आका के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं
- जिन्हें नही मिलता वे बाहर हाथ मलते हुए खड़े हैं
- गरीब के पीछे पडी है हाथ धोकर बीमारी
- मंहगा इलाज़ मुश्किल कौन देखे विवशता और लाचारी
- ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
- हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
- इधर प्रशासन हाथ धोकर पीछे पडा है हाथ धुलाने को
- मास्टर लगा है अपनी जेब से साबुन तोलिया जुटाने को
- सार्थकता इस दिन की है कि कुछ सीख जाएँ इस आदत को
- वरना तो सब कुछ ही न्योछावर है इस कहावत को
रचना प्रदीप मानोरिया 15th अक्टूबर 2008
29 comments:
सर मजा आ जाता है आपकी कविताएँ पड़कर keep it up
rajeev
ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
'wah, kya khub iss khavet ko chreetarth kiya hai aapne,
regards
http://bikhreyseafsaney.blogspot.com/
ati sundar rachna
Dear Pradeep Manoria,
मैं आप का तहे दिल से शुक्रिया करता हूं मेरे ब्लाग पे आकर टिप्पणी करने के लिए।
मैं आपके इस ब्लाग पे आपकी टिप्पणी पढ कर ही आया हू॓ बहुत अच्छा लिख्ते हो आप।
हमने तो अभी हिन्दी में लिखना दो चार साल से शुरु किया है। आप जैसे लोग उत्साह बढाएंगे,
तो हम भी हिन्दीमें लिखते रहेगे। हम वैसे तो इन्गलिश में लिखते है "सुलेखा ब्लॉग" पर।
यह भी उम्मीद करता हूं कि आप निरंतर ऐसे ही आते रहेंगे मेरे ब्लाग "थाट मशीन" पर।
कृप्या आप मेरी दूसरी रचनाएं भी पढें और टिप्पणी किजीए। धन्याबाद।
"राजी कुशवाहा"
http://rajee7949.blogspot.com/
हाथ धोकर टिप्पणी कर रहा हूं अच्छा लिखा है .
aap bhoot aachi kavita likhte hai.
dhanyavad jo aap mere blog per padhare.
good effort pradeep ji
keep it up
प्रिय प्रदीप /तात्कालिक प्रतिक्रिया के धनी /आशु कवि /हमारे यहाँ तो हस्त प्रक्षालन की परिपाटी पुरांनी है /चौके में हाथ पैर धोकर ही भोजन करने बैठते थे /फिर घरों में टेबल कुर्सी के प्राबधान ने हाथ धोने में कुछ कमी की /पहले शादी बगैरा में पंगत लगती थी तो हाथ धोकर बैठते थे लेकिन लोग जूते चुराने लगे तो बुफे शुरू हुआ हाथ धोने की प्रथा ही ख़त्म हो गई /खाने के बाद हाथ धोने तक को तो पानी मिलता नहीं है -हाथ धोने जाओ तो जूते और नीचे [[मतलब एडी पंजों के पास ]]कपडे ख़राब हो जाएँ
प्रदीप जी,
मजा आ गया और मैं भी आपके ब्लॉग से जुड़ गया हूँ. अब तो रोज ही दावत रहेगी और हाथ धोने भी ज़रुरी नही.
पानी बचाओ . . . . . . .
मुकेश कुमार तिवारी
क्या बात है..क्या हाथ धोया है घूम घूम कर. वाह!!!
वाह! बहुत सुंदर.
भाई प्रदीप जी,
गज़ब के लिंक जोड़ते हैं , चंद लाइनों में ही सब का हाथ बहुत खूबसूरती से धो दिया.
जीवन की चाल ही ऐसी हो गयी है कि सब हाथ धो कर ही पड़े है.
यदि नही पड़ेंगे तो कोई न कोई हाथ जरूर साफ कर जाएगा.
एक अच्छी रचना से रु-ब-रु करवाने के लिए हार्दिक शुक्रिया.
चन्द्र मोहन गुप्त
ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
इधर प्रशासन हाथ धोकर पीछे पडा है हाथ धुलाने को
मास्टर लगा है अपनी जेब से साबुन तोलिया जुटाने को
सार्थकता इस दिन की है कि कुछ सीख जाएँ इस आदत को
वरना तो सब कुछ ही न्योछावर है इस कहावत को
maja aaya. line jodane me aapka jawab nahi.
बहुत खूब.
हाथ धोने में छिपी हैं इतनी संभावनाएं
दिल तो करता है कि बस पढ़ते जाएँ
कमाल का लेखन है सर.
क्या बात है !
What A poem....
सार्थकता इस दिन की है कि कुछ सीख जाएँ इस आदत को
वरना तो सब कुछ ही न्योछावर है इस कहावत को
A very valuable information also with this.
Thanks
भाई सर्दी बहुत है, ओर पानी भी ठंडा है इस लिये गंदे हाथो वाली ही मेरी टिपण्णी स्वीकार करे, अब ना कहना हाथ धो कर टिपण्णिया ले कर पीछे पडगा,
ओर आप का हाथ धोकर धन्यवाद, इस सुन्दर तरीके से हाथ धुलाने के लिये
धन्यवाद ऐसेही हाथ धो कर पीछे पड़े रहिये ,या तो अखाडा छोड़ के भाग जाउंगा या तो फ़िर इसके दावं - पेंच सीख जाउंगा .|क्या आप को भागने वालों में से लगता हूँ ?लिखने की शैली वा भावार्थ अच्छे लगे .---->छिपता ना फिरता ईश्वर भी इंसानों से ,जो उसने हव्वा संग ,स्वर्ग से उसे भी निकाला न होता !
"अब तो इस अंजुमन नें आना है बार-बार,,
लगता कोई रिश्ता
पुराना है यार "
बहुत अच्छे प्रदीप जी ,बहुत अच्छे।
पहली बार आपके ब्लाग पर आकर आनंद मिला।
ग़रीब बाप की कन्या बैठी है आज भी कुंवारी
हाथ धोकर पीछे पडी है उसकी लाचारी
क्
या बात है
हाथ धोने के साथ साथ
व्यंग की धार को भी आपने नही छोड़ा
प्रिय मनोरिया जी,
आज तो सभी हाथ धुलाने के नाम पर हाथ की सफाई दिखा रहे हैं। पैसे पर हाथ मार रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। आप जैसे लोगों की सक्रियता से ही हमारे जैसे लोगों का हाथ मजबूत होगा। आपके प्रयासों के लिए साधुवाद! ऐसे ही अपनी सक्रियता बनाए रखें, मेरी शुभकामनाएं और सहयोग भी आपके साथ है।
मंदी शेयर बाज़ार के पीछे हाथ धोकर पडी है
wah saheb
dho ke rakh degi
regards
मनोरियाजी
कहावत के जरिये इतनी सुंदरता से सच्चाई बयान की है,काबिले तारिफ़ है/आपको बहुत-बहुत बधाई/
सादर
संगीता
वह मानोरिया जी ऐसी सफेदी की चमकार सर्फ़ , निरमा ,व्हील आदि में कहाँ?? त्वातित टिपण्णी के शंशाह है आप तो . मेरा सादर प्रणाम स्वीकारें
वह मानोरिया जी ऐसी सफेदी की चमकार सर्फ़ , निरमा ,व्हील आदि में कहाँ?? त्वातित टिपण्णी के शंशाह है आप तो . मेरा सादर प्रणाम स्वीकारें
पहली बार यह साईट देखी, अच्छी लगी और विशेष रूप से हिन्दी में विचारों के आदान प्रदान की सुविधा. प्रदीप जी की काव्य प्रतिभा प्रशंसनीय है. आशा है आगे भी पढने के लिए सामायिक विषयों पर कुछ न कुछ मिलता ही रहेगा.
भवदीय : ललित मोहन भटनागर, इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उ.प्र.)
वाह वाह..
अब तो हम भी पड़ जाएंगे हाथ धो कर आपके ब्लॉग के पीछे :)
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