Friday 3 July, 2009

मिलने की प्यास रहने दे

  • ये जो गम हैं मेरे, मेरे ही पास रहने दे |
  • जिन्दगी में बाकी ये , जीने की आस रहने दे ||
  • वो मिले या न मिले , उल्फत की शमा जलती रहे |
  • न रहे साथ भले , यादें ही पास रहने दे ||
  • कतरा कतरा शराब में जिन्दगी शामिल है |
  • मय मयस्सर नहीं , महकती हुई सांस रहने दे ||
  • घूँट दो घूँट में साँसे तो महक जाती हैं |
  • जो नशे का है सबब साकी को पास रहने दे ||
  • स्याह जुल्फों के किनारे से टपकता पानी |
  • बूँद मोती सी ये अश्कों के साथ रहने दे ||
  • क्या है रुखसत का सबब कौन पूछे ,जाने |
  • वक़्त आने का कहो ,मिलने की प्यास रहने दे ||
  • ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
  • मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे ||
= प्रदीप मानोरिया
09425132060

25 comments:

सदा said...

ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे ||

बहुत ही सुन्‍दर रचना, बधाई ।

निर्मला कपिला said...

भावमय रचना के लिये बधाई

विवेक सिंह said...

बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह साहब, क्या खूब कही, हर शे’र खूबसूरत.

ओम आर्य said...

# ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
# मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे ||
bahut hi sundar bhram hai ............aisi hi bhram banaaye rakhe..........atisundar

नीरज गोस्वामी said...

स्याह जुल्फों के किनारे से टपकता पानी |
बूँद मोती सी ये अश्कों के साथ रहने दे ||

बेमिसाल रचना है ये आपकी...दिल के करीब...हर शेर असर दार...
नीरज

राज भाटिय़ा said...

एक बहुत सुंदर रचना के लिये धन्यवाद

kumar Dheeraj said...

स्याह जुल्फों के किनारे से टपकता पानी |
बूँद मोती सी ये अश्कों के साथ रहने दे ||
प्रदीप जी आपने शेर -शायरी के जरिए अभिभूत कर दिया है । क्या खूब लिखा है आपने शुक्रिया

दिगम्बर नासवा said...

ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे

सुन्दर रचना है..........इस bharam के साथ jeena भी कितना madhur है

Dileepraaj Nagpal said...

DIL choo LIYa Aapne Sir jee...

Smart Indian said...

प्रदीप भाई,
ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे ||

बहुत सुन्‍दर!

"पतझड़ सावन वसंत बहार" के बारे में जानकारी डाक से भेज दी है, धन्यवाद.

श्रद्धा जैन said...

क्या है रुखसत का सबब कौन पूछे ,जाने |
वक़्त आने का कहो ,मिलने की प्यास रहने दे ||

bahut khoob kaha

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रदीप जी,

बहुत ही बढिया गज़ल कही है। बहुत ही अच्छे शेर हैं :-

कतरा कतरा शराब में जिन्दगी शामिल है |
मय मयस्सर नहीं , महकती हुई सांस रहने दे ||
घूँट दो घूँट में साँसे तो महक जाती हैं |
जो नशे का है सबब साकी को पास रहने दे ||

ऐसा लगता है कि यह तो तरन्नुम किसी दिन आपसे सुननी चाहिये।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रदीप जी,

बहुत ही बढिया गज़ल कही है। बहुत ही अच्छे शेर हैं :-

कतरा कतरा शराब में जिन्दगी शामिल है |
मय मयस्सर नहीं , महकती हुई सांस रहने दे ||
घूँट दो घूँट में साँसे तो महक जाती हैं |
जो नशे का है सबब साकी को पास रहने दे ||

ऐसा लगता है कि यह तो तरन्नुम किसी दिन आपसे सुननी चाहिये।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Alpana Verma said...

ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |
मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे .

बहुत खूब!
प्रदीप जी बहुत अच्छी रचना है.भाव मुखर हैं.बधाई.

vijay kumar sappatti said...

bahut hi behatreen gazal hai ji
aakhri sher to lajawab hai ..
meri badhai sweekar karen..

Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html

जितेन्द़ भगत said...

बहुत सुंदर!!

Harshvardhan said...

kaha hai sir aap ajkal lambe samay se lekhan kam chal raha hai aapka..... yah post achchi lagi... likhte rahiye........

गुंजन said...

प्रदीप जी

एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।

कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।

आपकी प्रतीक्षा में,

विनम्र,

जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय मानोरिया जी |बहुत दिन भटकने के बाद लौट के ....घर को आया |आकर आपका ब्लॉग खोला |३ जुलाई का |गम भी रहने दे और जीने की आस भी रहने दे |साथ न मिले याद ही रहे |शराब न मिले तो सांसे तो कम से कम महकती रहे |किसी की जुल्फों से गिरती बूँदें और हमारे गिरते आंसू तुलना बहुत उत्तम |बिछुड़ने का कारण जो भी रहा हो मिलने की आस तो रहे |उन्हें मात्र इंतना ही भ्रम बना रहे की उनकी जुदाई अब हमारे बर्दाश्त के बाहर है शेर ला जवाब

hempandey said...

'मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे '
- इस भरम के सहारे आदमी जीवन जी लेता है या बर्बाद भी हो सकता है.

Rashmi Swaroop said...

बड़ा ही खूबसूरत लिबास पहनाया है सर जी आपने दर्द को...
धन्यवाद
रश्मि.

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

एक खूबसूरत गज़ल, कलम की जानिब यूँ निकली
दिल पूछता सवाल---- ये ऐसे क्यूँ निकली ?

बहुत अच्छा प्रयास ,आगे भी उम्मीद है आपको पढ़ पाऊंगी .............
अब मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ .

ज्योति सिंह said...

ये जुदाई तेरी बर्दाश्त के काबिल न सही |मेरी चाहत है तुझे , इतना ही भरम रहने दे .
behad laazwaab .

विधुल्लता said...

ये जो गम हैं मेरे, मेरे ही पास रहने दे |
जिन्दगी में बाकी ये , जीने की आस रहने दे, बधाई|