Friday 13 February, 2009

पब संस्कृति एक कव्वाली

14 comments:

Vinay said...

बहुत ख़ूब


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गुलाबी कोंपलें

अभिषेक आर्जव said...

अच्छी कव्वाली है ! सजावट भी अच्छी है !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut sundar, ise apni awaaj bhi den to maja aata hai

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

वाह वाह वाह वाह . पिए कोई हमारा क्या हमारे बाप का भी कुछ नही जाता है

राज भाटिय़ा said...

पीयो भाई खुब पीयो, मजा आ गया बहुत सुंदर

अभिषेक मिश्र said...

बिल्कुल सही कहा है आपने. स्वागत.

Smart Indian said...

बहुत ख़ूब!
ये तो मालूम है मैं रिंद नहीं हूँ जौहर,
ज़ब्त के जाम से मैं अश्क पीया करता हूँ
~जौहर (बरेली)

Atul Sharma said...

प्रदीप जी, बात आपने बिलकुल सही कही है। इस देश में अब ऐसा ही प्रजातंत्र आना है। जिसकी मर्जी आए वह पब में जाए, जिसकी मर्जी आए वह दारु पी जाए, जिसकी मर्जी आए, वह किसी को भी पीट जाए, कोई पिंक चडडी पहनाए, कोई साडी पहनाए। और एक हम हैं कोने में खडे खडे आंसू बहाते रहेगें, क्‍योंकि जिसको भी टोकेंगें या तो वह पिंक चडडी भेंट कर देगा, या साडी पहना देगा।

Anonymous said...

चाहे औरत पिए या मर्द, घर.परिवार, समाज और देश का बहुत कुछ जाता है.

Ram Shiv Murti Yadav said...

आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं....बधाई !!

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

प्रदीप जी !
कैसे कहूं की ये कव्वाली ही है ?..........
इसे अगर आप गाते तो मज़ा दोगुना हो जाता .और ये भी समझ में आता की किसी का कुछ जा रहा है या नहीं .................
संस्कारहीन हो रही युवा पीढी को सही दिशा तो दिखाई ही जा सकती है ,सुन्दर प्रयास ....
शुभकामनाएं ..............

कडुवासच said...

... छा गये,प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रदीप जी,

बहुत दिनों बाद लौटा हूँ, बिमारी से ठीक होते ही एक मस्ती भरा जाम जो पीने-पिलाने की सारी बारीकियाँ सिमेटे हैं. एक बारगी तो ऐसा लगता है किसी मयखाने में बैठ कर लिखी हो / होगी?

एक मुकम्मल रचना के लिये बधाईयाँ.

मुकेश कुमार तिवारी

दिगम्बर नासवा said...

प्रदीप जी
कव्वाली के अंदाज़ में लिखी, खूबसूरत रचना
व्यंग लिखने में तो आपकी महारत वैसे भी है ...........
मज़ा आ गया