प्रदीप जी, बात आपने बिलकुल सही कही है। इस देश में अब ऐसा ही प्रजातंत्र आना है। जिसकी मर्जी आए वह पब में जाए, जिसकी मर्जी आए वह दारु पी जाए, जिसकी मर्जी आए, वह किसी को भी पीट जाए, कोई पिंक चडडी पहनाए, कोई साडी पहनाए। और एक हम हैं कोने में खडे खडे आंसू बहाते रहेगें, क्योंकि जिसको भी टोकेंगें या तो वह पिंक चडडी भेंट कर देगा, या साडी पहना देगा।
प्रदीप जी ! कैसे कहूं की ये कव्वाली ही है ?.......... इसे अगर आप गाते तो मज़ा दोगुना हो जाता .और ये भी समझ में आता की किसी का कुछ जा रहा है या नहीं ................. संस्कारहीन हो रही युवा पीढी को सही दिशा तो दिखाई ही जा सकती है ,सुन्दर प्रयास .... शुभकामनाएं ..............
बहुत दिनों बाद लौटा हूँ, बिमारी से ठीक होते ही एक मस्ती भरा जाम जो पीने-पिलाने की सारी बारीकियाँ सिमेटे हैं. एक बारगी तो ऐसा लगता है किसी मयखाने में बैठ कर लिखी हो / होगी?
14 comments:
बहुत ख़ूब
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गुलाबी कोंपलें
अच्छी कव्वाली है ! सजावट भी अच्छी है !
bahut sundar, ise apni awaaj bhi den to maja aata hai
वाह वाह वाह वाह . पिए कोई हमारा क्या हमारे बाप का भी कुछ नही जाता है
पीयो भाई खुब पीयो, मजा आ गया बहुत सुंदर
बिल्कुल सही कहा है आपने. स्वागत.
बहुत ख़ूब!
ये तो मालूम है मैं रिंद नहीं हूँ जौहर,
ज़ब्त के जाम से मैं अश्क पीया करता हूँ
~जौहर (बरेली)
प्रदीप जी, बात आपने बिलकुल सही कही है। इस देश में अब ऐसा ही प्रजातंत्र आना है। जिसकी मर्जी आए वह पब में जाए, जिसकी मर्जी आए वह दारु पी जाए, जिसकी मर्जी आए, वह किसी को भी पीट जाए, कोई पिंक चडडी पहनाए, कोई साडी पहनाए। और एक हम हैं कोने में खडे खडे आंसू बहाते रहेगें, क्योंकि जिसको भी टोकेंगें या तो वह पिंक चडडी भेंट कर देगा, या साडी पहना देगा।
चाहे औरत पिए या मर्द, घर.परिवार, समाज और देश का बहुत कुछ जाता है.
आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं....बधाई !!
प्रदीप जी !
कैसे कहूं की ये कव्वाली ही है ?..........
इसे अगर आप गाते तो मज़ा दोगुना हो जाता .और ये भी समझ में आता की किसी का कुछ जा रहा है या नहीं .................
संस्कारहीन हो रही युवा पीढी को सही दिशा तो दिखाई ही जा सकती है ,सुन्दर प्रयास ....
शुभकामनाएं ..............
... छा गये,प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
प्रदीप जी,
बहुत दिनों बाद लौटा हूँ, बिमारी से ठीक होते ही एक मस्ती भरा जाम जो पीने-पिलाने की सारी बारीकियाँ सिमेटे हैं. एक बारगी तो ऐसा लगता है किसी मयखाने में बैठ कर लिखी हो / होगी?
एक मुकम्मल रचना के लिये बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
प्रदीप जी
कव्वाली के अंदाज़ में लिखी, खूबसूरत रचना
व्यंग लिखने में तो आपकी महारत वैसे भी है ...........
मज़ा आ गया
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