Wednesday 11 February, 2009

मंहगाई और स्वप्न

14 comments:

दिगम्बर नासवा said...

वाह प्रदीप जी
क्या खूब रचना
हास्य, व्यंग, और जीवन के कटु सत्य को दर्शाते ........
इतने सुंदर रंग एक ही रचना में बधाई

Alpana Verma said...

बहुत खूब!
lekin,थोड़ा इंतज़ार करीए ...अगला बजट आ रहा है..शायद कुछ उम्मीद जागे और आप अपना वायदा पूरा कर सकें!

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....
शब्द ...भाव.....सभी कुछ बिलकुल संतुलित .......
आभार ....

Anonymous said...

बहुत खुब..

शोभा said...

बहुत सुन्दर लिखा है।

Atul Sharma said...

बहुत सुंदर रचना। बहुत बहुत बधाई।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! बहुत खूब.........

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत सुन्दर सर, वाह-वाह.

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

Ashutosh said...

बहुत सुन्दर लिखा है।

हिन्दी साहित्य .....प्रयोग की दृष्टि से

Udan Tashtari said...

सच्चाई सामने रख दी..बहुत उम्दा.

Ashutosh said...

मैंने अपने ब्लॉग का पता बदल दिया है। मेरे ब्लॉग का नया पता है :-
http://hindisarita.blogspot.com

समयचक्र said...

सुंदर रचना बधाई.


समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश

Pravin Dubey said...

बस रोना ही है इस महगाई मे