बेटे बेटी के लिये संजोये /
क्या ह्सीन ख्वाबों में खोये /
हर पिता वहीं को दौड रहा है /
दिशा सपनों की मोड रहा है /
शिक्षा की इस मंडी में /
कोटा की तलवंडी में /
धंधे का तूफान मचा है /
इससे नहीं यहॉं कोई बचा है /
उद्योग क्षेत्र सा विकसित है अब /
पा के दाखिला पुलकित हैं सब /
जीवन भर की बचत यहॉं पर /
करते हैं कुरबान यहॉं पर /
बच्चों के केरियर के हेतु /
शायद यही सिध्द हो सेतु /
बाप इसी सपने को सजाये /
फलीभूत हों सब आशायें /
इसी बात पर लुटता जाता /
सारी बचत तलवंडी में चढाता /
लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास |
बाप तो पागल सा फिरे , टूट गई सब आस ||
अपने बच्चे की योग्यता पहले करना जॉंच |
फिर कोटा में भेजना , नहीं आयेग़ी ऑंच ||
by Pradeep Manoria 09425132060
9 comments:
यह बेईमानी है भाई। कोटा घूम गए। तारीफ और बदनामी दोनों कर डाली। हमसे बिना पूछे ही। हमें खबर ही नहीं। हम भी याद रखेंगे जब कभी गुना आएंगे। अब की आओ तो खबर करके जरा कचौड़ियाँ खिलाई जाएँ। उन में नमक खाने के बाद बदनामी तो न करोगे।
वैसे रचना अच्छी भी है और सच्ची भी।
भाई अब हम सोचे गे कोटा जाने से पहले.
धन्यवाद चेताने के लिये
लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास |
बाप तो पागल सा फिरे , टूट गई सब आस ||
अपने बच्चे की योग्यता पहले करना जॉंच |
फिर कोटा में भेजना , नहीं आयेग़ी ऑंच
" bilkul shee kha, parkhna jrure hai... "
Regards
बहुत अच्छा लिखा है आपने । हमें बिना अपना मूल्यांकण किए अंधी दौड में शामिल नहीं होना चाहिए।
बधाई। अच्छा लिखा है
वाह क्या बात कहीं बिलकुल सही।
लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास |
बाप तो पागल सा फिरे , टूट गई सब आस ||
अपने बच्चे की योग्यता पहले करना जॉंच |
फिर कोटा में भेजना , नहीं आयेग़ी ऑंच ||
लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास |
बाप तो पागल सा फिरे , टूट गई सब आस ||
अपने बच्चे की योग्यता पहले करना जॉंच |
फिर कोटा में भेजना , नहीं आयेग़ी ऑंच ||
हमेशा की तरह बहुत बढ़िया सटीक रचना .धन्यवाद.
पते की बात कही है आपने।...सुंदर और रोचक प्रस्तुति ने मन मोह लिया है।
उद्योग क्षेत्र सा विकसित है अब /
पा के दाखिला पुलकित हैं सब /
जीवन भर की बचत यहॉं पर /
करते हैं कुरबान यहॉं पर /
sahi likhtey hain aap
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