Friday 10 April, 2009

सपनों का मौसम -- सन्दर्भ : लो.स.चुनाव२००९

  • पूरे देश में फसल स्वप्न की कैसी यह हरियाई है | 
  • दिवस हजारों बीते देखो याद हमारी आई है ||
  • पूर्ण देश में सपनों के विक्रेता ऐसे घूम रहे | 
  • गाँव गली में घूम घूम कर बूढे बच्चों को चूम रहे ||
  • कोई क़र्ज़ माफी के सपने ,सपने बिजली पानी के | 
  • कन्या की शादी के सपने .सस्ते चावल धानी के ||
  • नेता अब विपणन में माहिर स्वप्न सुनहरे दिखा रहा | 
  • भोला वोटर इन सपनो को निज मन में है सजा रहा ||
  • मिलने दलित अरे सांसद से , भूखा सड़क पर रहा पडा | 
  • आज उसी के घर के आगे ,नेता का वाहन आय खडा ||
  • अरे गाँव को लौटा भूखा , किन्तु नहीं मिलने पाया | 
  • आज उसी के घर में ,नेता ने भोजन खाया ||
  • फिर अखवार में फोटो अपना देख बेचारा भरमाया |
  • कष्ट पुराने विस्मृत सारे , नेता चरण शरण आया ||
  • ठगा गया वोटर ही सदा से , अपना अधिकार लुटाता है | 
  • नेता मिथ्या स्वप्न बेचकर , अपना व्यापार चलाता है ||
= प्रदीप मानोरिया 094 251 32060
photo courtsey google photo search

16 comments:

Anil Pusadkar said...

ठगे जाते रहे है और ठगे जाते रहेंगे।बहुत सही लिखा आपने,बधाई॥

हरि said...

सच लिखा गया है-ठगा गया वोटर ही सदा से...बहुत खूब। बधाई।

दिगम्बर नासवा said...

प्रदीप जी
अच्छी रचना...............नेताओं की पोल खोलती हुयी...........
अच्छा व्यंग है..आपकी तीखी धार है कलम की. बधाई

Alpana Verma said...

धारदार व्यंग्य!और चित्र भी जबरदस्त!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut baddhiya likha hai, kaash kisi ke kaan to khulen

Mumukshh Ki Rachanain said...

नेता मिथ्या स्वप्न बेचकर , अपना व्यापार चलाता है

समझ सको तो समझ लो, वर्ना फिर ऐसा मौक अब पाच साल बाद ही आएगा ....................


चन्द्र मोहन गुप्त

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

बहुत खूब ,मनोरिया जी ,
आपका जवाब नहीं ..........
काफी दिनों बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा .आप स्वस्थ रहें और निरंतरता बनाये रखें .....

शुभकामनाएं ......

Jayshree varma said...

जनता हर बार सियासी ताज बदल-बदल कर सपने देखती है... और हर बार यही होता आया है.... सुंदर अभिव्यक्ति.... धन्यवाद

गर्दूं-गाफिल said...

पूर्ण देश में सपनों के विक्रेता ऐसे घूम रहे |
गाँव गली में घूम घूम कर बूढे बच्चों को चूम रहे ||| ठगा गया वोटर ही सदा से , अपना अधिकार लुटाता है | नेता मिथ्या स्वप्न बेचकर , अपना व्यापार चलाता है ||

जब रो नहीं सकते तो हमको हसना पड़ता है
जब ढो नहीं सकते व्यवस्था लिखना पड़ता है

अच्छा लिखा है । बधाई

क्या कोई राह निकलेगी ?
या हम मसीहाओं की प्रतिक्छा में यूँ हिन् एडियाँ रगड़ रगड़ कर दुनिया से विदा होने वाले हैं
दर्द बहुत है अब दवाओं की बातें करो
जहरीली हैं हवाएं बचाव की बातें करो

गहरी वेदनाओं में न बस डूबे रहें
उत्स के लिए उडाव की बातें करो

Udan Tashtari said...

पूर्ण यथार्थ एवं सटीक रचना.

sandhyagupta said...

Achche shabd baan chode hain aapne.

RAJ SINH said...

AAJ KEE RAJNITI KE YATHARTH KE SATYA KO UDHEDTEE RACHNA ..............BADHAYEE !

मुकेश कुमार तिवारी said...

भाई जी,

आजकल हो कहां?

मुकेश कुमार तिवारी

"MIRACLE" said...

kahan gayeb ho gye hai .nya padne ko nahi mil rha ahi jahan bhi hai jra jaldi se blog par aye.

गर्दूं-गाफिल said...

प्रदीप जी
चुनाव का मौसम भी गया
मंत्रिमंडल की फसल भी आ गई है
आवारा सांड लोकतंत्र के फसलों को चरने निकल पडे हैं
आइसे में आप अपना डंडा लेकर कहाँ खडे हैं
अपने खेत बचाना है तो चौकस रहिये
जागते रहो कहते रहिये और खुद भी जागते रहिये
ता अब नीद से निकल आओ कुछ लिखो सुनाओ

दिगम्बर नासवा said...

कहाँ खो गए ....... प्रदीप जी, लंबा अरसा हो गया