Saturday 28 February, 2009

होली और चुनाव की कॉकटेल

अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
जाको ओर छोर न दीखे ,बाँटो बाँटो का शोर ||  
कोई वेतन वृद्धि देता कोई टेक्स में छूट | 
जनता का वे माल लुटा कर वोट रहे हैं लूट ||  
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |  
दुनिया जूझ रही संकट से , यहाँ भरी भर पूर | 
वोटों के लालच में नेता , हुए नशे में चूर || 
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
सेवा कर कम करदिया , बढ़ गया वेतनमान | 
कहीं क़र्ज़ माफी हुयी , हुया देश कल्याण || 
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
= Pradeep Manoria 

18 comments:

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रदीप जी,

मान गये आपकी पारखी नजर और नज़रिये दौनों को. क्या खूब पकड़ा है होली के बहाने सरकार और वोटों की राजनीति को, जमकर रगड़ा है.

बस यही कहना चाहूंगा कि होली रंगभरी और कलम दमभरी रहे और व्यंग्य बौछारें मन प्रफ्रुल्लित करती रहे.

होली की अग्रिम शुभकामनाएँ.

मुकेश कुमार तिवारी

शोभा said...

सेवा कर कम करदिया , बढ़ गया वेतनमान |
कहीं क़र्ज़ माफी हुयी , हुया देश कल्याण ||
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
बढ़िया है।

hem pandey said...

'कहीं क़र्ज़ माफी हुयी , हुया देश कल्याण '
- देश का नहीं, खुद के कल्याण के लिए रचे गए ये चोंचले कारगर होंगे यह भी संदेहास्पद है.

राज भाटिय़ा said...

कोई वेतन वृद्धि देता कोई टेक्स में छूट |
जनता का वे माल लुटा कर वोट रहे हैं लूट ||
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
दुनिया जूझ रही संकट से , यहाँ भरी भर पूर |
वोटों के लालच में नेता , हुए नशे में चूर ||
बस एक बार जीता दो फ़िर देखो सारी कसर केसे पुरी करते है...
बहुत ही रोचक ढंग से आप ने आज के हालात पर यह व्यंग लिखा, बहुत सटीक लगा
धन्यवाद

anilpandey said...

bahut khoob kya sundar likha hai aapne wakaee aaj ke rajneetagya kee khoob jmkr khabar lee hai aapne. dhanyawad!

Shastri JC Philip said...

प्रिय प्रदीप, सही कह रहे हो वाकई में रेवडियां बंट रही हैं -- अंधे की रेवडी. जनता जम कर पिस रही है.

कविता सशक्त है. लिखते रहो.

सस्नेह -- शास्त्री

-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

दिगम्बर नासवा said...

प्रदीप जी
आपके अपने अंदाज़ की व्यंगात्मन रचना
मजा आ गया पढ़ कर. देखें कब तक रहता है यह मौसम

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

pradeep ji!
jawaab nahin aapka ....
sam-samyik vishayon men to aapki kalam bahut teji se fisalti hai ........
holi ki revaniyan aapko mubaarak ....

Alpana Verma said...

वाह !!!!!!!!क्या चुनावी रंग में रंगी कविता..और Cartoon भी!
बहुत जबरदस्त प्रस्तुति है!बहुत अच्छी!

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत सुन्दर हास्य व्यंग !!!

हरकीरत ' हीर' said...

अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर |
जाको ओर छोर न दीखे ,बाँटो बाँटो का शोर ||
कोई वेतन वृद्धि देता कोई टेक्स में छूट |
जनता का वे माल लुटा कर वोट रहे हैं लूट ||
अब के आयो एइसों फाग रेवडी बँट रही चारों ओर ...बहुत सटीक लगा....!!
प्रदीप जी,
होली की शुभकामनाएँ.

अनिल कान्त said...

आपने तो बिलकुल साफ़ साफ़ ...आईना दिखा दिया

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई प्रदीप जी,

बुरा न मानों होली है के भाव पीछे जम कर कोसा है नेताओं और सरकार को, पर असली मुद्दा तो जनता के शिक्षित होने का है की वह कैसे इन लुटेरों का प्रतिकार करे.
उसे तो नागनाथ नहीं तो सापनाथ ही चुनने का अधिकार है. "इनमे से कोई योग्य नहीं जनता प्रतिनिधि के रूप में" जब तक यह विकल्प नहीं मिलेगा जनता इन्हें इनकी औकात कैसे बता सकती है और तब तक हमें, हमारे देश को यूँ ही लुटते हुवे देखना पड़ेगा यही सच है.

उत्तम रचना प्रस्तुति पर बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sahi kaha aapne.

अभिषेक आर्जव said...

बहुत मुश्किल है वह न होना जो होता आया है..... ! अच्छी लगी कविता !

कडुवासच said...

... बहुत खूब!!!!!

sandhyagupta said...

Bahut khub.Yun hi likhte rahiye.

RAJ SINH said...

kya khoob PRADEEP jee,

nas pahchan rahe hain aap desh kee .TARANGITON KO REWADIYAN BANTEE JA RAHEE HAIN AUR BUBHUKCHON KO VADE ! MAZEDAR BAAT DESH 'PEENAK' ME HAI AUR REWADIYON KA BOJH LADE .. KHOOB KAHA AAPNE .