पारिवारिक पृष्ठ भूमि की कहानियों पर आधारित /
आजकल चल रहे टी वी के धारावाहिक /
समाज में खूब छा रहे हैं /
शायद सभी को भा रहे हैं /
भारतीय संस्कृति की संकेत मात्र साडियॉं /
ब्लाउज की आवश्यकता को नकारती टीवी की नारियॉं /
वक्रता के भाव चेहरे पर सजाये /
अपने शारीरिक सौष्ठव को दर्शायें /
कुटिलतायें और षडयंत्र /
इनकी सफलता का मंत्र /
इतना ही नहीं काफी आगे और भी देखिये /
नयनों के साथ कानों को भी सेंकिये /
सामान्य से माहौल में साधारण से संवाद /
पार्श्व में चलती हुई कानफोडू आवाज /
तेज नगाडे और तलवार के खींचे जाने के स्वर /
प्रतीत होता मानो आया युध्द का अवसर /
चाय पीते हुये या कुछ खाते हुये टीवी देखो /
कर्णफाड संगीत से खिसियाकर कप ही फैंको /
टीवी के किसी पात्र को यदि हार्ट अटैक आया है /
पार्श्व में नगाडा और झिंगझांग बजाया है /
ऐसा लगता है हार्ट अटैक नहीं आया है /
मानो यमराज सेना लेकर सीधा ही चला आया है /
आपके घर में है यदि अच्छी और बडी सी टीवी /
और साथ में है सीरियल पसंद करने वाली बीबी /
बेहतर कि कान में लगाने को रुई ले आयें /
दिल मन और चित्त में शांति पायें /
साथ ही >>> सीरियल निर्माताओं से गुजारिश है और इतना ही चाहें /
दिखाने में आप स्वतंत्र हैं कितना भी दिखायें /
किन्तु पार्श्व संगीत में थोडी कमी अवश्य लायें /
==प्रदीप मानोरिया
09425132060
17 comments:
प्रदीप जी
बहुत सटीक रचना जो बहुत कुछ सच की बखिया उखाड़ रही है . आनंद आ गया . बधाई .
बहुत खूब खिंचाई !
प्रदीप जी बिल्कुल सत्य लिखा है आपने!
आप ने तो सारी बात ही आज साफ़ बता दी, आओ का लेख सचाई से भरपुर है, ओर आज यही सब तो हो रहा है.
धन्यवाद
बढि़या है। मजा आया आपकी रचना पढ़कर।
प्रदीप जी ,
सत्य वचन ..................
आपने तो टी वी सीरियलों की बखिया उधेड़ दी .
बधाई ..........
बिल्कुल सटीक टीवी सीरियल्स का यथार्थ चित्रण-अच्छा वार..बधाई.
टीवी के किसी पात्र को यदि हार्ट अटैक आया है /
पार्श्व में नगाडा और झिंगझांग बजाया है /
ऐसा लगता है हार्ट अटैक नहीं आया है /
मानो यमराज सेना लेकर सीधा ही चला आया है /
मनोरिया जी,
हम सब के अनुभव को आपने बड़ी खूबसूरती से कहा है, धन्यवाद!
प्रदीप जी
बेहतरीन व्यंग, एकता कपूर और टी.वी. की साफ़ साफ़ तस्वीर खोल दी है आपने.
सही धोया है, मज़ा आ गया
bahut sateek tippani ki hai pardeep ji aapne . yahi sachchyi hai inkee
बस मुझे यह डर है कि कहीं एकता जी न पढ़ लें. बाकी हमें तो बहुत अच्छा लगा.
भारतीय संस्कृति की संकेत मात्र साडियॉं
-मानो यमराज सेना लेकर सीधा ही चला आया है
ha ha ha!!
-बड़ी ही पैनी निगाह है आप की....और उन बातों को कविता के रूप में रोचक ढंग से प्रस्तुत करने की कला भी निराली है...
उम्मीद है सीरियल बनने वालों ने भी इसे पढ़ा हो--तो शायद कुछ बदलाव आ जाए...कुछ नहीं तो प|त्रों का श्रींगार और पहनावा ही प्रोपर कर दे.
टी.वी. सीरियल्स का यही हाल है!... वास्तविकता से दूर ... कहने को पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनाएं जाते है!....सास, ससुर,बेटा, बहू... सभी पात्र होते है!... रचना बहुत मार्मिक है, धन्यवाद!
हा हा हा.... खूब ठहाका लगाकर पढी आपकी रचना..... भगवान बचायें ऐसी टीवी सीरियल देखने वाली बीवियों से..... और ऐसी सीरियल बनाने वालों से.... हम जानते है ऐसी सीरियलों में जो पारिवारिक विद्रोह, कटुता और षडयंत्र दिखाये जाते है इससे हमारे परिवारों में भी इसका थोडा बहुत प्रभाव पडे बगैर नहीं रहता.... हम रचनाओं से इसका विरोध करते रहते है वास्तविक स्थिति में नहीं....
जय हिंद
bahut accha likha hai aapne,kabhi aap mere blog ke follower baniye,mera blog hai :
http://meridrishtise.blogspot.com
Tv wale to wahi paroste hain jo darshakon ko bhata hai.Shayad hamari ruchi hi vikrit ho gayi hai..
एकता कपूर के सीरियल ही क्यूं, आजकल तो हर एक चैनल पर सिर्फ़ फूहड़ता और बेसिर पैर की ही रचनाएँ पेश की जा रही हैं. 'लाफ्टर चैनल्स, रियलिटी शोज़ इत्यादि' कहीं से भी शिष्ट और सुरुचिपूर्ण पूर्ण दिखते हैं? यह हमारी विडम्बना ही है कि निहायत ही बदतमीज़ और बेहूदे किस्म के 'डायलौग' बोलने वाले पाकिस्तानियों को इतना सिर पर चढाया जाता है कि वोह हमारे ही मुंह पर हमारे ही मंच पर खड़ा होकर हमारे ही अपने लोगों पर बेहूदे व्यंग्य बोलकर सिद्धू, शेखर सुमन और अब, शत्रुघ्न सिन्हा भी ठहाके लगाते हैं. क्या यह सब धर्म निरपेक्षता के नाम पर ढोंग नहीं है? हमारा कोई भी कलाकार पाक में मुंह खोल सकता और जिंदा वापिस आ सकता है
Post a Comment