- श्रीमान अमिताभ जी और जया जी
- आख़िर आपने ऐसा क्या कहा जी
- जिससे उग आए अनुत्तरित सवाल
- हिन्दी और हिन्दुस्तान में मच गया बबाल
- और आपने तो चुपचाप मांग ली माफी
- क्या भाषा के प्रति इतना सम्मान है काफी
- आपकी भी मजबूरी है
- इसीलिये माफी भी शायद जरूरी है
- क्यूंकि मुम्बई वासियों पर जो लोग हावी हैं
- उनके पास बड़ी हस्तियों की चाबी है
- वो या तो कोई अदंर वर्ल्ड का बोस है
- अथवा नेता टाईप ओवर वर्ल्ड की धौंस है
- मुम्बई में तो इनकी ही रंगदारी है
- चुपचाप साँसे लेते रहना ही यहाँ समझदारी है
- रचना ==प्रदीप मानोरिया
Thursday, 25 September 2008
हिन्दी पर प्रश्नवाचक ?
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22 comments:
bahut pasand aaya
अंडर वर्ल्ड और ओवर वर्ड, अच्छा व्यंग्य !
मे तो बम्बे ना जाऊ भुल कर भी.
bahut khub....aap to kaafi sadhey hua likhtey hain...aur ktaksh bhi kartey hain..ha h aha...
Great work!!
प्रदीप जी,
और आपने तो चुपचाप मांग ली माफी
क्या भाषा के प्रति इतना सम्मान है काफी
भाई वाह। पसन्द आयी आपकी रचना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
सर मजा आगया ऐसे ही लिखते रहिये ओर्र सबकी आखों के तारे बने रहिये
राजीव
हिन्दी पर अमित जयाजी के वावत आपकी पोस्ट देखी /इसी मौजू पर संभवत परसों सोमबार की नई दुनिया में जन manch देखा होगा /usmen meree प्रथम tippnee देखी होगी sheershak था ""जयाजी का waakya ही ग़लत था /मैं आपको apnee एक pustikaa bahint karnaa चाहता हूँ sahu जी madhup को तो bhijwaadee है /
Kafee kavitayen padh daaleen...vyang khoob kaste hain aap! Aur TV serialske baareme ekdam sahee hai...!
Sach ham kahan the, kahan aa gaye!
चुपचाप साँसे लेते रहना ही यहाँ समझदारी है
"AMITABH BACHCHAN" jaisa mashhoor vyakti bhi kitna "MAJBOOR" hai.
चुपचाप साँसे लेते रहना ही यहाँ समझदारी है
well edited
bahot khub sir, bahot achha laga, dhnyabad,
# ्रीमान अमिताभ जी और जया जी
# आख़िर आपने ऐसा क्या कहा जी
# जिससे उग आए अनुत्तरित सवाल
# हिन्दी और हिन्दुस्तान में मच गया बबाल
# और आपने तो चुपचाप मांग ली माफी
# क्या भाषा के प्रति इतना सम्मान है काफी
वाह! बहुत बढ़िया लिखा है. सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई. सस्नेह.
पसन्द आयी आपकी रचना।
हिन्दी के विकास के लिए दृढ संकल्प की जरूरत है.
आपको रंगदारों से डर नही लगता
prashn ka uttar to hai hi,
bahut achha likha hai
shukriyaa mere blog par aane ka
पऱदीप जी मैं पहले भी अपकी गली में अा चुका हूं पर अाप अपने शेरों की शोर में खोए-खोए से रहते हैं। अापकी अिभव्यिक्त कािबले तारीफ है। भाषा और मुंबई की मजबूिरयां अब राज ठाकरे जैसों के ही हाथों में हैं। भला अिमताभ और जया का क्या मोल।
प्रदीप जी ,मेरे ब्लॉग पर आने तथा टिप्पणी देने के लिए आभार , मेरा प्रयत्न रहेगा कि आपको सदैव शास्त्रीय एवम तथ्य परकलेख पढने को मिलें , | हिन्दी कि अभिव्यक्ति पर प्रादेशिक सोच का अधि नायक वाद कैसे भारी हो रहा है ,आपने अपनी रचना के माध्यम से बहुत सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है | .
मुम्बई में तो इनकी ही रंगदारी है
चुपचाप साँसे लेते रहना ही यहाँ समझदारी है
बहुत सही लिखा आपने ! धन्यवाद !
बहुत खूब अमित
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