Sunday 21 September, 2008

टी वी सीरियल में नारी

  • सास भी कभी बहू थी कसक कसौटी आदि आदि 
  • सामाजिक मूल्यो की होती हुई बर्बादी 
  • ईर्ष्या और दम्भ से भरे नारी के चरित्र 
  • कुटिलता की कहानी कहते ये चल चित्र
  • पहले तो थी दो एक मन्थरा व कैकेई 
  • अचानक ये टी वी मै सैकडौ कैसै हो गई 
  • स्वेटर बुनने वाली नारी यहॉ जाल बुनती है
  • दूसरे को मात देने की नई नई चाल चुनती है
  • कुटिल कल्पनाएँ  ये तान्डव ये खेल 
  • हमारी सन्सकृति से खाता नही मेल 
  • बिना बलाऊज की पहनी हुई साडिया 
  • वस्त्र के अभाव से जूझती हुई नारिया 
  • टी वी सिनेमा थे हमारी समाज के आइने 
  • आज किन्तु बदल चुके है इसके मायने 
  • अनेकता मै एकता इस देश की मिसाल है 
  • स्टार की एकता का ही चल रहा कमाल है 
  • रचना == प्रदीप मानोरिया 
  • चित्र स्टार टीवी से साभार

22 comments:

makrand said...

बिना बलाऊज की पहनी हुई साडिया
वस्त्र के अभाव से जूझती हुई नारिया
sir u gone through deep sense of wide angle to the society
still there is scope i pray that it should be remain in coming days
regards

Sumit Pratap Singh said...

ha ha ha. kya kavita banai.swyam bhi padi va apni maiya ko bhi padai.dono ko atydhik bhai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत जबरद्स्त!
आज की सार्थक रचना।

MANVINDER BHIMBER said...

sahi kaha hai

makrand said...

thanks for visiting my blog
regards
keep in touch sir

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

असि सब भांति अलौकिक करनी,

महिमा जासु जाई ना बरनी।

Udan Tashtari said...

शानदार!!!

Satish Saxena said...

प्रदीप जी !
टीवी पर हमारी संस्कृति परिवार का प्यार मिटाने की ही कोशिश की जाती है ! कुछ भी ऐसा दिखाओ जिससे लोग चौंक जायें ! चाहे परिवारों का नाश हो जाए , पर पैसा आना चाहिए ! आपने अपनी तकलीफ अच्छी तरह प्रस्तुत की है ! लिखते रहें !

डॉ चन्द्रजीत सिंह एवं डॉ. किंजल्क सी. सिंह said...

Very well said. I appreciate you. These serial have ntiohing to serve but hatered.
Dr. Chandrajiit Singh
kvkrewa.blogspot.com
indianfoodconcept.blogspot.com

कुश said...

बहुत अच्छे जी..

रंजन (Ranjan) said...

सटीक

श्रद्धा जैन said...

ahhaha main to hanste hanste lot pot ho gayi

Anonymous said...

आपने टी वी सीरियल में नारी रचना में सुंदर व्यंग्य किया है |

Krishan Kant Bhardwaj said...

आपने टी वी सीरियल में नारी रचना में सुंदर व्यंग्य किया है |

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

sahi likha aapney tv ney naari ki chavi ko kafi bagada hai.

Unknown said...

chaukas kavita hai pradeep ji..

सुप्रतिम बनर्जी said...

भाई,
रचनाएं शानदार हैं। ख़ास कर मोबाइल और मच्छर की तुलना बहुत अच्छी लगी। साधुवाद।

Anonymous said...

aachi rachna hai ....aajkal ke serials par sunder vyang kiya hai

dahleez said...

टीवी सीिरयल की िबल्कुल सही तसवीर पेश की है अापने। वैसे मैं इन्हीं बेहूदा सीिरयलों की वजह से टीवी देखना छोड़ चुका हूं। इस रचना के िलए अाप बधाई के पातऱ हैं।

राज भाटिय़ा said...

मजा आ गया , आप का लेख पढ कर, बहुत ही सुन्दर लिखा हे आप ने.
धन्यवाद

Satish Saxena said...

यह रचना बेहतरीन भावः लिए है प्रदीप जी ! इस प्रकार की रचनाओं की अधिक आवश्यकता है , हमारी नयी पीढी को ! आप अच्छा लिख रहे हैं !

naresh singh said...

aapkee rachanao me sarthkata hai, tv ne hamare samaj ko bhrmeet kiya hai. paise ke piche nirmata pagal ho gaye hai. isi dhod me doordarshan bhi shamil ho gaya hai.Tv= Thriller,wolger,salesmen