
मज़हब वतन में कोई मोहब्बत से बडा नहीं है 
इश्क इंसानी से  बढकर इबादत कोई नहीं है 
सियासत के ठेकेदार लडाते मज़हब के नाम पर 
है इश्क अगर दिल में बस बात ये सही है 
क्या फ़ैसला  जमीं ये है राम या अल्ला की
दिल को मिला ले उससे जिससे तेरी लगी है 
बंदा तू राम का या अल्ला का बन्दा तू है 
सांसे है वही तेरी लहू भी तेरा वही है 
=प्रदीप मानोरिया