Sunday, 20 June 2010

दिल गीत और सुर

  • अफ़साने कुछ अनजाने से गीत पुराने लाया हूँ |
  • तेरी महफ़िल में बातों से लफ़्ज़ चुराने आया हूँ ||
  • लव खामोश और बन्द निगाहें स्याह अंधेरा छाया है |
  • तेरी सांसो की आवाज़ें सुर मैं मिलाने आया हूँ ||
  • खाली सागर फ़ैले पैमाने महफ़िल उजडी उजडी है |
  • बेसुध रिंदो के आलम में दो घूँट मैं पाने आया हूँ ||
  • रुत बरखा की मेघ दिखें न दिल धरती सा तपता है |
  • आँसू की दो बूँद बहा कर तपन मिटाने आया हूँ ||
  • दिल की चाहत दिल में रखकर वक्त बहुत अब बीत गया |
  • जीवन की संध्या में अब मैं याद दिलाने आया हूँ ||
=Pradeep Manoria 9425132060

10 comments:

Dr.Abhishek goel said...

बहुत सुन्दर भावो को पिरोया है आपने "तेरी सांसो की आवाजें सुर मैं मिलाने आया हूँ " गज़ब आपकी कलम बहुत भारी है

निर्मला कपिला said...

हर एक पँक्ति लाजवाब है बधाई

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत दिनों बाद वापसी हुई.. अन्तिम दो पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं..

kailash narayan jha said...

beautiful thoughts,
excellent expressions,
keep it up..
k.n.jha

श्रद्धा जैन said...

waah kya baat kahi hai

aansun ki do bund .........tapan mitaane....... waah

महेन्द्र मिश्र said...

रुत बरखा की मेघ दिखें न दिल धरती सा तपता है|
आँसू की दो बूँद बहा कर तपन मिटाने आया हूँ ||

बहुत सुन्दर मनोरिया जी काफी दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने मिली...धन्यवाद्

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत बेहतरीन!

Prem Farukhabadi said...
This comment has been removed by the author.
Prem Farukhabadi said...

अफ़साने कुछ अनजाने से गीत पुराने लाया हूँ|
तेरी महफ़िल में आकर खुदको भुनाने आया हूँ।

लव खामोश हैं बन्द निगाहें छाया स्याह अंधेरा
तेरी सांसो को अपनी साँसों से चुराने आया हूँ।

लाजवाब है बधाई!!

रचना प्रवेश said...

bahut sunder bhav or shabdo se saji hui umdda gazal ...badhai